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Thursday, September 26, 2024

कबीर दास कौन थे? वह गुरु के सम्मान में क्या कह गए? क्या सच में कबीर दास पढ़े लिखे नहीं थे?

कबीर दास : वह कवि जो धर्म, जाती और भाषा से परे थे, वह जिन्होंने शिष्य को गुरु का मान करना सिखाया!


आप भले ही हिंदी साहित्य या हिंदी के लेखकों और कवियों से परिचित हो न हो पर संत कबीर का लिखा, ‘गुरु’ को समर्पित एक दोहा आप सभी ने ज़रूर पढ़ा या सुना होगा।

 15वीं सदी के मशहूर कवि कबीर दास की - कबीर की भाषाएँ, सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी हुआ करती थी।  इनकी भाषा में आपको हिंदी भाषा की सभी बोलियों का मिश्रण मिलेगा, जिसमें राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी तथा ब्रजभाषा सम्मिलित है।


क्या सच में कबीर दास पढ़े-लिखे नहीं थे?
कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे यह सत्य है मग़र जीवन के अनुभवों से उन्होंने बहुत कुछ सिखा। अपनी कविताओं को वे अपने शिष्यों को सुनाते थे और उनके शिष्य उन्हें लिख देते, इसलिए उनकी कविताओं को कबीर-वाणी (कबीर का कहा हुआ) कहा जाता है।


इन्हीं वाणियों का संग्रह ” बीजक ” नाम के ग्रंथ में किया गया है, जिसके तीन मुख्य भाग हैं - 'साखी', 'सबद (पद )' और 'रमैनी'। 



हम इन्हें ऐसे संत के रूप में पहचानते हैं जिन्होंने हर धर्म, हर वर्ग के लिए अनमोल सीख दिए हैं, जिनमें से उनकी सबसे बड़ी सीख थी ‘गुरु के लिए सम्मान’ की!


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आईये पढ़ते हैं गुरु के लिए लिखे संत कबीर के सबसे मशहूर दोहे और उनकी व्याख्या –

"गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।" 

[गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।] 



"गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।" 

[कबीर दास कहते हैं – हे सांसरिक प्राणियों। बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।] 



"गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
  वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।" 

[गुरू और पारस के अन्तर को सभी ज्ञानी पुरूष जानते हैं। पारस मणि के विषय जग विख्यात हैं कि उसके स्पर्श से लोहा सोने का बन जाता है किन्तु गुरू भी इतने महान हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना लेते हैं।] 



आपकी सबसे पसंदीदा कबीर-वाणी कौनसी है, क्या आपको यह लिखा पसंद आया। 
हमें कमेंट में लिखकर ज़रूर बताएं!

 

Monday, August 12, 2024

पीतल को सोना बताकर बेचने को क्या कहेंगे? फ्राड? बेईमानी, चोरी?

पीतल को सोना बताकर बेचने को क्या कहेंगे? 
फ्राड? बेईमानी, चोरी? 

10 रु की चीज को दस करोड़ का बताकर, बैंक में गिरवी रखके, करोड़ो कर्ज लेने वाले को क्या कहेंगे? 

हिंडनबर्ग यही बता रहा है। 
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जब शेयर मार्केट में किसी शेयर के दाम नकली रूप से बढ़ाये जाते है, तो आम इन्वेस्टर के फायदे के लिए नही बढ़ाये जाते। 

क्योकि कम्पनी के 25 शेयर मार्केट में है, तो 75 मालिक के पास। अगर बाजार में 25 शेयर का मूल्य सौ गुना हो जाये, तो 75 शेयर का मूल्य भी सौ गुना हो जायेगा। 

तो प्राइज बढ़ने से इन्वेस्टर की कम, मालिक की वेल्थ ज्यादा बढ़ती है। 
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यह वेल्थ है- शेयर
और ये शेयर है- महज एक कागज

जो कल बाजार में 10 रु का था, आज 10 करोड़ का दिख रहा है। तो मालिक अपने शेयर गिरवी रखकर, 10 करोड़ के असली नोट उठा सकते हैं। 

तो ये यह हुआ, पीतल को सोना बताकर बेचने का फ्रॉड। 
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और इस फ्रॉड को पकड़ कर, सजा दिलाने की जिम्मेदारी जिस संस्था की थी, उसकी कर्ता धर्ता खुद ही इस फ्रॉड में शामिल है.. 

जो फंड इन शेयरों की कीमत नकली रूप से बढा रहा था, उस फंड में इनका भी पैसा लगा है। 
यह बात हिण्डन बर्ग की नई रिपोर्ट कह रही है। 
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हिंडनबर्ग अपनी रिपोर्ट, पब्लिक डोमेन में मौजूद दस्तावेजों की पड़ताल करके देता है।

याने जो रिपोर्ट कम्पनियां खुद ROC के देते है। वेबसाइट में डालते है, या अन्य फर्मों से आदान प्रदान करते हैं। 

ऐसे में उसके आंकड़े अकाट्य है। कम्पनियों द्वारा स्व-स्वीकार्य हैं। उसकी रिपोर्ट के डिनायल का मतलब यह है कि वो खुद ही अपनी रिपोर्ट डिनाय कर रहे हैं। 
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हिन्डनबर्ग से बचाव के लिए इसके खिलाफ बोली जाने वाली मूर्खतापूर्ण बाते कुछ इस तरह की हैं...

1- यह विदेशी संस्था है। अमेरिकी है, सीआईए है, एलियन है, दुष्ट भारत से जलता है। 

जवाब- उस सब मान लिया। आंकड़े सच है, या झूठ, आप वो बताओ। सच, देशी या विदेशी नही होता। 

और अगर झूठ है, तो कम्पनी खुद झूठ बोल रही है। आखिर उसी के आंकड़े, और जानकारी तो कोट की जा रही है। 

2- हिन्दनबर्ग ऐसी रिपोर्ट के बाद शार्ट सेल करता है, पैसे कमाता है। 

जवाब- स्मगलिंग की सूचना देकर माल पकड़वाने वाले को 10% इनाम मिलता है। अब सूचना देने वाला इनाम के लालच में करता है, या देशप्रेम से ओत प्रोत होकर, यह बात बकवास है।

पुलिस को अब स्मगलर को पकड़ना चाहिए , की सूचना देने वाले को ही लालची होने का इल्जाम लगाकर खारिज कर दोगे?? 

2- ये देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश है। 

जवाब -ये बात 100% सच है। अडानी इज इंडिया, इंडिया इज अडानी। उसके शेयर गिरने से देश एकदम बर्बाद हो जाएगा। 

क्योकि वह जबरन शेयर के दाम बढ़ाकर, बढ़े दाम पर गिरवी रख के, अरबो करोड़ लोन लेता है, इसी से तो हमारी अर्थव्यवस्था चल रही है। 

वर्ना बाकी तो भड्ड है। कर्जा आकाश पर खड़ा है, रुपया पाताल में। बस अडानी ही अर्थव्यवस्था है। देश के बाकी 140 करोड़ नागरिक, लाखो फैक्ट्री, व्यापारी, कर्मचारी और 10 लाख कम्पनियां तो बस घुइयां छील रही हैं। 
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जो लोग बात बात पर कहते है, की फलाना खदान बिक रही है, खरीद लो, वरना न कहना कि अडानी ने खरीद लिया.. 

उनसे अनुरोध है कि पीतल जैसे शेयर को सोना बताकर, गिरवी रखवाकर दो चार लाख करोड़ का असली नोट मुझे भी दिलवा दो। सेबी से संरक्षण भी दिलवा दो। 

फिर रेल, भेल, तेल, जेल सब खरीद लूंगा, और तुमको एक हजार करोड़ कमीशन भी दे दूंगा। 
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दरअसल मोदी और हिंदुत्व की रक्षा करते करते ये बनबूचड़ों की जमात, कब अडानी के पन्ना प्रमुख बन गए, इन्हें पता ही न चला। 

देश के प्रमुख पदों पर चाटुकार, बेईमान, इंकम्पेटेंट और धूर्त लोग बिठाये गए हैं। एक अलग ही धूर्त लोक बना दिया गया है, जो आपस एक दूसरे के काले कारनामो का पालन पोषण करते हैं। 

और भाजपा-आरएसएस, ट्रोल और तमाम इनके टूलकिट, इस धूर्तलोक के सुरक्षाकर्मी बन गए हैं।
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क्या केशव बलिराम हेडगेवार ने सोचा होगा, कि वो सारा मन्त्र, यंत्र और तंत्र जो बना रहे हैं, वह सौ साल बाद बस, एक आदमी की गुलामी कर जेब भरने का सिस्टम बन जायेगा। 

और वो सावरकर, जो 60 रुपये के लिए पूरी नेकनामी मिट्टी में मिला लिए। सोने के भाव पीतल बेचने वाले को देख कब्र में कितना उलटते पुलटते होंगे। 

क्योकि ये दो चेहरे, आरएसएस नाम के वृक्ष का सबसे मीठा फल हैं। 

🤔

Friday, August 2, 2024

जाति जनगणना मेरी नज़र में जरूरी क्यों?

जाति जनगणना के कई लाभ, नुकसान नगण्य। 
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1. हमारे समाज में जाति और हरेक जाति के आंकड़े/स्थिति से जुड़े कई तरह के भ्रम विद्यमान हैं। उनके टूटने के लिए जातिवार जनगणना जरूरी है। संख्या के साथ उनकी स्थिति का पता होने से असल में वचिंत और कमजोर जातियों को बेहतर सुविधा व योजनाओं का त्वरित लाभ सही अनुपात में दिलाया जा सकता है। 

2. आबादी के अनुपात में सबको समुचित अवसर मिलना ही 'समाजवादी लोकतंत्र' का मूल मकसद है। अनुसूचित जाति, भारत की जनसंख्या में 15 प्रतिशत हैं और अनुसूचित जनजाति 7.5 प्रतिशत हैं। सरकारी नौकरियों, स्कूल, कॉलेज तथा विविध चुनावों में उनको आरक्षण इसी अनुपात में मिलता है। 

3. वहीं, जनसंख्या में ओबीसी और सवर्ण की हिस्सेदारी कितनी है, इसका कोई ठोस आकलन/आंकड़ा नहीं है। 1993 में आये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक, कुल मिला कर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इस वजह से 50 प्रतिशत में से अनुसूचित जाति और जनजाति के संख्यानुपतिक आरक्षण को निकाल कर बाकी का 27 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी के खाते में डाल दिया गया। इसके अलावा ओबीसी को मात्र 27 प्रतिशत आरक्षण का देने का कोई आधार नहीं है।

4. ऐसे में कुछ सवाल बने रह जाते हैं। पहला यह कि ओबीसी की सही आबादी है कितनी? कहीं ओबीसी को संख्या के अनुपात से ज्यादा या कम आरक्षण तो नहीं मिल रहा है? यदि संख्या से ज्यादा आरक्षण मिल रहा है, तो उसे कम किये जाने की जरूरत है, वहीं यदि संख्यानुपात में कम है, तो इस गैरबराबरी को खत्म करने के लिए आरक्षण बढ़ाने की जरूरत है। चूंकि, आठ लाख की पारिवारिक आय वाली गरीबी को आधार बना कर बिना किसी गणना के सवर्णों को दिये 10 प्रतिशत आरक्षण की वजह से आरक्षण का दायरा अब 60 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, तो सही आंकड़े आने पर इसमें कानूनी तौर पर बदलाव भी संभव है। इससे सुप्रीम कोर्ट के मनमाने फैसलों को तथ्यात्मक रूप से चुनौती दी जा सकती है। 

5. एक मुद्दा यह उठता रहता है कि ओबीसी के आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ तीन-चार प्रमुख जातियों ने ही उठाया है। इनमें उत्तर भारत की तीन प्रमुख ओबीसी जाति यादव, कुर्मी और कुशवाहा जाति के नाम आते हैं। ऐसे में जाति जनगणना से पहले तो यह पता चल पायेगा कि क्या 1993 से लेकर अब तक सरकारी नौकरियों में ओबीसी हिस्सेदारी 27 फीसदी तक भी पूरी हो पायी है या नहीं? यदि पूरी हो भी गयी है, तो क्या सचमुच बड़े हिस्से का लाभ इन्हीं कुछ ही जातियों ने उठाया है? इन जातियों की संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व की क्या स्थिति है?

6. ओबीसी जातियों की संख्या और प्रतिनिधित्व के आंकड़े के आधार पर ओबीसी और इबीसी के आरक्षण अनुपात को घटाया/बढ़ाया जा सकता है। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को भी लागू किया जा सकता है। 

7. समाज में अभी तक मुंहजोरों का बोलवाला रहा है, क्योंकि असल में कौन कितने पानी में है, यह पता ही नहीं है। फलाने की आबादी कितनी है, सब जाति जनगणना से पता चल जायेगा। नहीं तो अभी वही स्थिति है कि जैसे- हट्टा-कट्टा श्रम करने वाला मजदूर भी थुलथुले मालिक से खुद को कमजोर मानता है। इसी तरह कई तथाकथित कमजोर जातियां अपनी संख्या को जानती ही नहीं है और यह मान कर कि हम तो कम होंगे, न चुनाव लड़ते हैं, न ही दलों के पास टिकट की दावेदारी करते हैं।

8. रही जातिगत विभेद के बढ़ने की बात तो वह पहले से विद्यमान है और उसे हिंदुत्व वे ऑफ लाइफ के रहते खत्म नहीं किया जा सकता। क्योंकि, इस धर्म में पुजारी बनने की योग्यता/प्रक्रिया शिक्षा न होकर जाति है, इसीलिए महान बनने की कोशिश में अपना बहुमूल्य समय नष्ट न करें।

9. बहुसंख्य दलित/ओबीसी जातियों के लोग भेदभाव से बचने के लिए बच्चों के नाम में सवर्णों जैसे सरनेम जोड़ देते हैं। उन्हें आरक्षण का लाभ उठाने से ज्यादा जातिगत भेदभाव वाली व्यवस्था के शिकार हो जाने का भय होता है। अधिकांशतः जिनके सरनेम को देख जाति का कंफ्यूजन हो, वे पिछड़े-दलित वर्ग के होंगे। यही भय उनके तरक्की का काल है, क्योंकि कोई भी जाति से छोटा-बड़ा नहीं होता। छोटे-बड़े लोगों के सोच होते हैं। जरूरत है कि सोच को बड़ा करते हुए अपनी पहचान की गणना करवाइये। 

10. जैसे मेरी जाति कुशवाहा है, यह कहने के लिए मुझे लम्बा समय लग गया, लेकिन यह कहते हुए न तो मुझे कोई दुख है और न ही कोई गर्व। समाज की जो बुनावट है, उसमें से एक जाति में संयोग से मेरा जन्म हुआ। सभी पिछड़ी-दलित जाति के लोग आराम से सवर्णों के सरनेम की तरह अपनी जाति का सरनेम बिना जातिवादी कहलाये लगा सकें, इसके लिए जाति आधारित जनगणना जरूरी है।

और... जिन्हें लगता है कि वे जात-पात से ऊपर उठ चुके हैं, वे जाति वाले कॉलम में नोटा दबा दें। 

बाकी त जे है से हइये है!

एससी-एसटी आरक्षण में कोटे में कोटा का क्या मतलब है? क्या ये सही है भी या नहीं?


कुछ बहुत सिंपल सी बात लोग नहीं समझ पाते। क्योंकि उन्हें उन्ही के वर्ग के लोग गुमराह कर देते हैं। जैसे एससी-एसटी आरक्षण में कोटे में कोटा। यहां यह बात समझनी होगी कि आरक्षण को खत्म या फिर किसी और को नहीं दिया जा रहा, यहां एससी-एसटी वर्ग के ही उन लोगों को नेतृत्व दिया जा रहा जो तमाम कोशिशों के बाद भी मुख्यधारा में नहीं आ पाए। 

अभी जैसे करीब एससी-एसटी के लिए 23% आरक्षण है। इसमें जाति को लेकर किसी तरह का वर्गीकरण नहीं है। अब होगा यह कि इसमें सरोज, जाटव, मीणा, धोबी जैसी जातियों के कोटे निर्धारित हो जाएंगे। फिर हमें यह देखने को नहीं मिलेगा कि एक परीक्षा में एससी-एसटी कोटे से सिर्फ मीणा या फिर जाटव ही नजर आ रहे। सब नजर आएंगे। सबकी स्थिति बेहतर होगी। 

कुछ लोग कहते हैं कि आरक्षण जाति के आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक भेदभाव पर दिया गया है। हां यह सही बात है लेकिन सामाजिक भेदभाव जब तक खत्म नहीं होगा क्या उन्हीं परिवारों को लाभ मिलता रहेगा जो चार-चार पीढ़ियों से आरक्षण के चलते सिस्टम में हैं। उनके पास घर-गाड़ी, बंगला है। 

दलित वर्ग के शिक्षित और सफल लोगों को अपने समुदाय के लोगों की फिक्र करनी चाहिए थी लेकिन वह सिर्फ जातीय पहचान को बढ़ावा देने और उसे बनाए रखने के लिए फिक्रमंद दिखते हैं। आप अपने गांव में देखिए, जो संपन्न हो गए हैं वह अपने ही वर्ग के लोगों का अपमान करने का मौका नहीं छोड़ते। आर्थिक मजबूती से उनके अंदर एक समांती सोच घर कर जाती है। 

आप सबको ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करना चाहिए। इसके लागू होने से दलित वर्ग की बाकी जातियों को लाभ होगा। अगर आपको लगता है कि दूसरे योग्य नहीं हैं तो आप बताएं कैसे योग्य होंगे? मौका मिलेगा तभी तो होंगे न! आप तो अपने ही भाई बंधुओं को मौका नहीं देना चाहते।

बाबा साहेब अम्बेडकर आज होते तो वह भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते।

_✍️ Rajesh Sahu

Wednesday, July 17, 2024

साँप को कैसे पहचानें? साँप के काटने पर क्या करें क्या ना करें?



🟢सांप काट ले तो तुरंत करें उसका उपचार, इन गलतियों से बचें। 

🟢कैसे पहचाने कि सांप जहरीला है या नहीं ?

🟢इस जानकारी को सेव कर ले और दूसरों तक शेयर करें, बरसात के मौसम में सांप काटने से जाने वाली जान इस सही जानकारी से बचाई जा सकती है I

सांप काटने पर सबसे जरूरी है कि उसके लक्षणों की पहचान कर उसका तुरंत उपचार करना।आजआपको बताएंगे कि यदि सांप काट ले तो क्या करेंऔर क्या ना करें। 👇👇 

🟢सांप के काटने पर क्या करें :

1.तुरंत एंबुलेंस को कॉल करें 
2.व्यक्ति को सांप से दूर ले जाएं।
3.यदि घाव दिल के नीचे है तो व्यक्ति को लिटा दें।
4.व्यक्ति को शांत और आरामपूर्वक से रखें और जहर को फैलाने के लिए जितना संभव हो सके व्यक्ति को स्थिर रखें।
5.घाव को ढीली और साफ पट्टी से कवर करें।
6.प्रभावित हिस्से से किसी भी गहने या टाइट कपड़े को हटा दें।
7.यदि सांप ने पैर पर काटा है तो जूतों को निकाल दें।
9.सांप के काटने के समय का ध्यान रखें।

🟢क्या न करें:

1.डॉ द्वारा निर्देशित किए जाने तक व्यक्ति को कोई दवा न दें।
2.यदि सांप के काटने का घाव व्यक्ति के दिल से ऊपर की ओर है
घाव को न काटें
3.जहर को बाहर चूसने का प्रयास न करें
4.घाव पर ठंडे संपीड़न, बर्फका प्रयोग न करें।
5.व्यक्ति को अल्कोहल या कैफीनयुक्त पेय न दें
6.पीड़ित को चलने न दें। उन्हें वाहन से ले कर जाएं।
7. सांप को मारने या पकड़ने का प्रयास न करें। यदि सम्भव हो तो सांप की तस्वीर ले। 
8.किसी भी पंप सक्शन डिवाइस का उपयोग न करें।

🟢सांप के काटने के लक्षण क्या हैं?
उल्टी ,शॉक ,अकड़न या कंपकंपी एलर्जी 
पलकों का गिरना ,घाव के चारों ओर सूजन, जलन और लाल होना 
त्वचा के रंग में बदलाव ,दस्त बुखार पेट दर्द ,सिरदर्द जी मिचलाना 
लकवा मारना ,पल्स (नब्ज) तेज होना ,थकान मांसपेशियों की कमजोरी ,प्यास लगना, लो BP

🟢कैसे पहचाने कि विषैला है या नहीं ?

भारत में सांपों की 250 प्रजातियां हैं, जिनमें से 4 सबसे अधिक घातक हैं। 
*कॉमन कोबरा (नाग ), 
*सॉ-स्केल्ड वाइपर, 
*कॉमन क्रेट और 
*रसेल वाइपर। 

1.जहरीले सांप का शीर्ष बहुत विशाल(त्रिकोण)होता है जबकि गैर जहरीले सांप का शीर्ष सामान्य होता है। (जैसा नीचे फोटो में दिखाया गया है )

2.आमतौर पर 2 दांत के निशान जहरीले सांप के होते हैं और छोटे-छोटे बहुत सारे निशान गैर जहरीले सांप के। 

Note:- स्वास्थ संबंधित जानकारी के लिए X पर फॉलो करें 
@drvikas1111  पोस्ट को रिट्वीट करें ताकि सही जानकारी से उनकी जान बचाई जा सके। 

🟢सांप काटने पर फर्स्ट ऐड -
सांप काटने की जगह को साबुन और पानी से धोना चाहिए ,साथ ही उस पर साफ/स्टाइल कपड़े से ड्रेसिंग कर सकते हैं। 

सांप काटने की जगह को ऊपर से बांध सकते हैं परंतु ,ज्यादा जोर से बांधने पर पैर/हाथ की ब्लड सप्लाई रुक जाता है और पैर/हाथ काटने की नौबत आ जाती है। #HealthTips #snake

राहुल के बुरे दिन कैसे शुरू हुए??

राहुल के बुरे दिन कैसे शुरू हुए?? 

शुरू हुए भट्टा परसौल से। किसानों की जमीन सरकारी प्रोजेक्ट के लिए लेने, और उचित मुआवजा न मिलने की समस्या को लेकर वे किसानों से मिलने जाना चाहते थे। 

यूपी सरकार ने रोका, तो वे नाटकीय तऱीके से मोटरसायकिल में बैठकर चले गए। यह पहली गलती थी। 
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दूसरी गलती थी, उड़ीसा में नियमगिरी का दौरा। यहां उन्होंने अपना फेमस जुमला बोला- आई एम योर सोल्जर एट डेल्ही.. 

राहुल, गरीबो का सिपाही बनने की कोशिश कर रहे थे। यह अच्छी बात तो नही थी। 

गरीबो का सिपाही बनने के लिए आपको अमीरों के किले पर चढ़ाई करनी पड़ेगी। और अमीर जब आपका मित्र ही हो, तो चढ़ाई क्यो करना?? 

क्योकि नियमगिरी और भट्टा परसौल के बाद भू अधिग्रहण क़ानून आया। किसानों को जमीन के चौगुने मोल मिले,लेकिन अमीरों के प्रोजेक्टों की कॉस्ट तो चौगुनी हो गई। यह कीमत मुनाफे में छेद करती है। नुकसान देती है। 

आखिर यह दुश्मनी क्यो निकाली राहुल ने?? 
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यूपीए-2 सरकार भी अपने पैरों पर जमकर कुल्हाड़ी मार रही थी। और उसमे आगे आगे थे- जयराम रमेश। 

वे पर्यावरण मंत्री थे। 

अब मंत्री को लालबत्ती कार लेनी चाहिए, बंगले में रहना चाहिए। चुपचाप फीते काटने चाहिए और नोट लेकर, नोटशीट पर दस्तखत करने चाहिए। पर मंत्रीजी एआईए- एसआईए स्टडी को पढ़ने लगे

जयराम रमेश ने अपना जॉब सीरियसली ले लिया। पर्यावरणीय मानकों पर सैंकड़ो प्रोजेक्ट रद्द किए, खारिज किया, फच्चर फंसा दिया। धनपशुओं के अरबो अधर में लटक गए।  

अब हाथियों के कॉरिडोर के लिए, माइंस प्रोजेक्ट को रोकने का काम, कोई बुद्धिमान नेता रोकता है क्या?? 

जिस देश मे अक्ल से बड़ी भैंस होती है, वहां हाथी बड़ा या उद्योगपति? आप बताओ। 
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एक के बाद ऐसे कई मामले हुए, और सरकार अमीर विरोधी सरकार बन गयी। 

लेकिन अमीरों के हाथ, सरकार से भी लम्बे होते है। और चैनल उनमे से एक होता है। 

देश के 30 में से 18 चैनल उसी के थे, जिसके लड़के के ब्याह में रिहन्ना नाचती है। लिहाजा सारे चैनल सुर बदलने लगे। 

जो घोटाले, पांच सात साल बाद, कोर्ट खारिज करने वाला था, उनका तुरत फुरत मीडिया ट्रायल चला। चैनल के पर्दे पर आपकी अदालत लगी। एंकरों ने मनमोहन सरकार को, टीवी पर दोषी करार दे दिया। 
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एक कंगारु कोर्ट रामलीला मैदान में भी लगाई गई। टीवी ने उसे 60-60 घण्टे का अनब्रोकन कवरेज दिया। इन कोशिशों से एकाएक, हवा बदलने लगी। 

दरअसल तूफान पैदा हो गया। 

जो बड़े बड़े पंखे लगाकर पैदा किया गया था। इन पंखों का कनेक्शन उन्ही घरानों से जुड़ा था, जिनके ब्याह में जस्टिन बीबर नाचता है। 
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सरकार बदली, और फिर उसी मीडिया ने पप्पूकरण शुरू किया। टीवी और सोशल मीडिया पर 5 साल, एकतरफा नरेटिव चला। 

पप्पू, पप्पू, पप्पू...

राहुल फिर भी लड़े। भीतर लड़े, बाहर लड़े, लेकिन अकेले। न कांग्रेस साथ थी, न जनता, न मीडिया, न सिस्टम। उस पर बीच चुनाव बालाकोट का ड्रामा। 

यूँ समझिये, 2019 में अभिमन्यु को घेरकर मारा गया। जो सरकार बदलनी चाहिए थी, मजबूत होकर लौटी। 

राहुल भी महज 8 सीटें बढ़ा सके। 
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इस्तीफे, और साल दो साल की उहापोह के बाद राहुल ने फिर सर उठाया। वह किया, जो पहले नही किया था। 

जनता से जुड़े। जो शब्दो से कह पाने में सफल न हुए, देहभाषा बोल गई। अब उसकी आंखें बोलती है, बदन बोलता है, देश सुनता है। 

समझता भी है। 
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पप्पू करण का वह दौर गुजर चुका है। राहुल मिट्टी पकड़ पहलवान की तरह अखाड़े में डटे हैं। पहले से कहीं ज्यादा मुखर, चमकदार, ताकतवर, निर्भय नजर आते हैं। 

लेकिन अंदाज वही अक्खड़ है। वे खेत मे दिख जाएंगे, नाई की दुकान में, किसी बढई या मिस्त्री की वर्कशाप में दिख जाएंगे, सड़को पर चलते दिख जाएंगे...

लेकिन आज भी यह बन्दा, उस ब्याह में नही दिखता जहां देश का सारा पोलिटीकल क्लास नाचता है। 
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यह तब जब सबसे बड़ा उद्योगपति, खुद न्योता लेकर दस जनपथ पहुँचा। राहुल नही मिले, वे भगदड़ में मरे लोगो को सांत्वना देने चले गए। मणिपुर चले गए। गुजरात चले गए। 

एंटीलिया में हाजिरी नही दी, 
सर न झुकाया। 

इस जिद्दी लड़के के इसी अंदाज का कायल हूँ। अब भले ही इसी अंदाज ने जिसने पंद्रह साल पहले, कांग्रेस का, राहुल का, देश का सितारा डुबोया था। 
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पर अच्छा लगता है, कि तमाम झँजवात में गिरने, बिखरने, टूटने के बावजूद भी कोई है जो डरा नही है, डिगा नही, बदला नही है। 

वो आज भी अड़ा है.. 
वहीं खड़ा है। 

भट्टा परसौल के किसानों से घिरा, नियमगिरी के आदिवासियों के बीच उस मंच पर, जहां से आती हुई आवाज, वैसी की वैसी रवानियत के साथ, कानो में गूंज रही है.. 

आई एम योर सोल्जर एट डेल्ही.. 
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और मैं कहता हूँ...बी देयर माई बॉय, 

योर एरा हैज कम...


लेखक कर्ता है आपका

Monday, July 15, 2024

आपको पता है अमेरिका में राष्ट्रपति की हत्या कब-कब हुई?

Photo : Convey of John f Kennedy

आपको बता दे कि अमेरिका में कब-कब राष्ट्रपति की हत्या कर दी गई? 

* 1865 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या कर दी गयी.
* 1881 में तत्कालीन राष्ट्रपति जेम्स गारफील्ड की हत्या कर दी गयी.
* 1901 में तत्कालीन राष्ट्रपति विलियम मैककिंली की हत्या कर दी गयी.

इस हत्या के बाद अमेरिका की संसद (Congress) ने सीक्रेट सर्विस एजेंसी से अमेरिका के राष्ट्रपति को सुरक्षा मुहैया कराने का जिम्मा सौंपा.

1902 में सीक्रेट सर्विस एजेंट्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति को सुरक्षा देना शुरू कर दिया.

◆◆◆
तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने 14 अप्रैल 1865 में अपनी मौत से कुछ घण्टे पहले सीक्रेट सर्विस एजेंसी की स्थापना के अध्यादेश पर हस्ताक्षर किया था.

लेकिन सीक्रेट सर्विस की स्थापना सुरक्षा के लिए नही, जाली नोटों के कारोबार पर नकेल कसने के लिए की गई थी.

सीक्रेट सर्विस एजेंसी को ज्यादा अधिकारी दिया गया. हत्या, बैंक रॉबरी और गैरकानूनी जुआ की जांच करने के अलावा आंतरिक खुफिया एजेंसी का भी दायित्व सौंपा गया.

1908 में FBI की स्थापना के बाद सीक्रेट सर्विस एजेंसी ने अपना पूरा ध्यान राष्ट्रपति की सुरक्षा व्यवस्था में केंद्रित किया.

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1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी पहले राष्ट्रपति थे जिनकी हत्या सीक्रेट सर्विस एजेंट्स की सुरक्षा व्यवस्था में हुई.

डल्लास शहर के दौरे पर पहुंचते ही सीक्रेट सर्विस एजेंट्स ने राष्ट्रपति के लिमोजीन कार की छत को बंद रखा था.

हज़ारों लोग सड़कों पर कई घण्टों से राष्ट्रपति की एक झलक देखने के लिए खड़े थे. जॉन एफ कैनेडी ने जनता का अभिवादन स्वीकार करने के लिए लिमोजीन कार की छत को खुला कर करवा दिया.

सुरक्षा व्यवस्था में यह सबसे बड़ी चूक साबित हुई.

जॉन एफ कैनेडी के सिर में गोली मार दी गयी. उनकी पत्नी घबरा गयीं वो चीखने चिल्लाने लगीं 

पीछे के काफिले में चल रही सीक्रेट सर्विस एजेंट्स की कार से क्लिंट हिल नाम के सीक्रेट सर्विस एजेंट्स ने बहादुरी का परिचय देते हुए राष्ट्रपति की चलती कार पर कूद कर राष्ट्रपति की पत्नी को कवर किया.

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जॉन एफ कैनेडी की हत्या के बाद सीक्रेट सर्विस सुरक्षा में किसी भी राष्ट्रपति या भूतपूर्व राष्ट्रपति की जान नही गयी.

लेकिन हत्या करने की नाकाम कोशिश जरूर हुई.

1912 में तत्कालीन राष्ट्रपति थिओडोर रूसेवलेट पर जानलेवा हमला हुआ. 

1981 में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन पर जानलेवा हमला हुआ. 

2024 में भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर हमला हुआ.

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1968 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे रोबर्ट एफ कैनेडी की हत्या कर दी गई.

इस हत्या के बाद सीक्रेट सर्विस एजेंसी को राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों को सुरक्षा देने का दायित्व सौंपा गया.

सीक्रेट सर्विस एजेंसी सिटींग राष्ट्रपति, उनका परिवार और भूतपूर्व राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को आजीवन सुरक्षा मुहैया कराती है.

आप लोगों को जानकारी कैसे लगी कमेंट बॉक्स में बताएं.


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Thursday, July 11, 2024

ज़िंदगी हो तो पूजा खेड़कर जैसी! क्या आप जानते हैं पूजा खेड़कर कौन है?

ज़िंदगी हो तो पूजा खेड़कर जैसी! 
क्या आप जानते हैं पूजा खेड़कर कौन है? यदि नहीं जानते तो चिंता करने की कौई बात नहीं। मैं बताता हूं आपको पूजा खेड़कर कौन है और वो चर्चा में क्यों है? 
दर असल आप जानते हैं कि यूपीएससी क्रैक करने अपने आप में कितना कठीन है और इसमें डॉक्यूमेंट की जाँच प्रक्रिया भी कठिन है। यूपीएससी होने के बाद भी IAS मिलेगा या नहीं ये भी चिंता का विषय होता है। 
OBC, SC, ST, EWS, PWD आदि जैसे वर्गों के लिए कुछ सीट आरक्षित होता है जिसके वजह से थोड़ा बहुत कम NO. होने पर भी अच्छा रैंक आ जाता है, उसके बाद उसके डॉक्युमेंट्स, PHYSICAL CONDITIONS देख कर CANDIDATE के IFS, IAS, IPS, IRS जैसे पदों के लिए चुना जाता है। 

अब आते हैं पूजा खेड़कर पर की वो चर्चा में क्यूं है? 
* दरअसल उसका UPSC में रैंक 821 आया मगर IAS मांगता मैं और लिया भी।
* ट्रेनी IAS अफ़सर पूजा के पैरेंट्स के पास संपत्ति 40 करोड़ 
 110 एकड़ कृषि भूमि, 6 दुकानें , 7 फ्लैट, 900 ग्राम सोना, हीरे, 17 लाख रुपये 
  की सोने की घड़ी, 4 कारों के साथ दो प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में हिस्सेदारी है। 
  मगर अपुन नॉन-क्रीमी लेयर में आता है।  
* ट्रेनी IAS हैं मगर मुझे अपने सीनियर का ऑफिस कब्जाना है और कब्जाया भी।
* अपुन Audi पर नीली बत्ती लाल बत्ती मांगता है, गाड़ी का VIP नम्बर मांगता है और मिला भी।
* दरअसल पूजा खेड़कर अब तक मात्र अपने नख़रीले अंदाज़ के कारण चर्चा में थीं 
  और उनका ट्रांसफर हो गया था मगर अब सामने आया है कि इन्होंने दिव्यांग 
  कैटेगरी से सलेक्शन लिया और 821 रैंक के बाबजूद IAS बनी। 
* इन्हें UPSC ने छह बार मेडिकल टेस्ट के लिए बुलाया मगर ये नहीं गईं।


Sunday, July 7, 2024

क्या सच में लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति जैसे सम्मानित पदों पर ऐसे सवाल उठना वाकई में चिंता का विषय है?

राजदीप सरदेसाई जी ने अपने YouTube चैनल पर ओम बिरला जी और जगदीप धनकड़ जी को लेकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि 

"लोकसभा में ओम बिरला जी और राज्यसभा में जगदीप धनकड़ जी दोनों ही लोग एकदम से Biased हैं, यह दोनों ही लोग अपने पद के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। यह दोनों ही लोग वन साइडेड हैं।"

उन्होंने आगे यह भी कहा कि 

"राज्यसभा में तो TV की स्क्रीन पर जगदीप धनकड़ साहब ही दिखाई देते रहते हैं।"

दरअसल लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति का पद बेहद ही सम्मानित होता है और इसकी एक गरिमा भी होती है मगर 

अब इन पदों पर ऐसे सवाल उठना वाकई में चिंता का विषय है।

Source: Jaiky Yadav

Wednesday, July 3, 2024

राहुल गांधी का बालक बुद्धि इतना विकराल होगा? बालकबुद्धि है तब ये हाल है कि एक भाषण में 12 बार पानी पिलाया।


बालकबुद्धि है तब ये हाल है कि एक भाषण में 12 बार पानी पिलाया। 

वही बालकबुद्धि जब संसद में बोल रहा था तो खुद प्रधानमंत्री दो-दो बार खड़े हुए। पांच-पांच मंत्री लगे थे मिस्टर छुईमुई को बचाने में। और बालकबुद्धि?? 

वही बालकबुद्धि है जिसने तुम्हारा अहंकार तोड़ दिया और 400 पार के नारे का ये हाल हुआ कि नतीजे के बाद न हंस पाए, न रो पाए। 

कार्यकर्ताओं के सामने आए तो जैसे शोकसभा चल रही हो - 

आंख में आंसू, फीकी सी नकली हंसी... एक ही महीने में भूल गए? 

वही बालकबुद्धि है जिससे चुनाव लड़ने के लिए पूरी सरकार उतारनी पड़ती है। हिम्मत है तो पार्टी को पार्टी से चुनाव लड़ने दो! खरीदा हुआ आयोग, खरीदा हुआ मीडिया, सीबीआई, ईडी, आईटी और पूरी सरकार, ऊपर से धार्मिक उन्माद का ज्वार, तब भी न हुआ 250 पार! 

यह मजाक उड़ाना नहीं है। इसे खीज कहते हैं। हार के बाद भानुमती का कुनबा जोड़कर सरकार बनी है। जिन्हें मुस्लिमपरस्त कहा, उन्हीं से गठजोड़, पाखंड की सारी सीमा पार। 

चुनाव में हिंदुओं को भड़का रहे थे कि कांग्रेस मुसलमानों को आरक्षण देगी। अब मुसलमान को आरक्षण देने वाले से गठबंधन? हिंदू अंधा है? उसे दिखता नहीं, तुम्हीं अकेले होशियार हो? 

दस साल तक अरबों फूंक डाले उसी आदमी को पप्पू साबित करने में, सब पानी में गए। अब बालकबुद्धि लॉन्च किया है। यह मजाक उड़ाना उससे भी ज्यादा भारी पड़ेगा। 

 देश ने देखा कि कैसे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर आपकी चर्चा उसी बालकबुद्धि पर केंद्रित रही। आपके भाषण का सार यही निकला कि आप कांग्रेस कांग्रेस कांग्रेस छोड़कर कुछ बोल ही नहीं सकते। 

असल में आप डरे हुए हैं इसलिए जब आपको अपने कार्यक्रमों और नीतियों पर बोलना है, तब राहुल गांधी से आतंकित होकर डीरेल हो जाते हैं।

Tuesday, June 18, 2024

रेल मंत्री रहते हुए लालू जी औऱ अश्विनी वैष्णव ज़ी में क्या फर्क़ है?

आइये आज इस बात पर प्रकाश डालने का प्रयास करें की दोनों के कार्यकलाप में क्या अन्तर है? मैं इस बात पर ज़रूर ध्यान नहीं खींचना चाहूंगा कि दोनों में कौन स्मार्ट दिखते हैं? कि दोनों में कौन आम चूस के खाता है या नहीं, दोनों में किसका हेर स्टाइल अच्छा है या फ़िर दोनों में कौन कितना अच्छा makeup करके सेंट मार कर रहता है? मैं इस बात पर ज़रूर नजर डालने का कोशिश करूंगा कि दोनों में rail मंत्री जैसे पोस्ट के लिए कौन फ़िट था

Friday, June 14, 2024

झूठ-सच की ब्रांडिंग करके नरेटिव कैसे खड़ा किया जाता है?

महीन जाल बुनकर, झूठ-सच की ब्रांडिंग करके नरेटिव कैसे खड़ा किया जाता है, विडीयो उसका शानदार उदाहरण है। 
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पहले वक्ता अपनी स्टैंडिंग बताता है

वह राहुल गांधी के साथ "चाय पीता" है, और उन्हें राहुल को लेक्चर करने के लिए अक्सर बुलाया जाता है। 

यानी वह छोटा मोटा आदमी नही। तटस्थ, स्ट्रेट फार्वर्ड भी है। निजत्व का सम्मान भी करता है, अहा.. !!! 

फिर एक स्टेटमेंट- "राहुल विकास विरोधी है, "शायद" मार्क्सवाद का कीड़ा उनके दिमाग मे बैठा है" इस बीच कुछ शब्द जैसे सेंट स्टीफेंस, जेएनयू, वामपंथ टपका दिये। 
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अब आगे वे अपने स्टेटमेंट को साबित करेंगे।

तमिलनाडु शिक्षा पर खर्च करता है, मिड डे मील ख़र्च करता है। वह अमीर राज्य है, तो कर लेगा। गरीब राज्य कैसे करें। राहुल वामपन्थी है, शिक्षा सब्सिडाइज करना चाहते हैं। 

प्रोफेसर साहब।

विद्या ददाति विनयम, विन्यादयाति पात्रत्वाम
पत्रत्वात धनमाप्नोति, धनाद धर्म, तत: सुखम

याने पेट काटकर शिक्षा पर खर्च करो। यह हमारे भारत के नीति शास्त्र कह रहे हैं, यूरोप के कार्ल मार्क्स नही। 

तमिलनाडु में मिडडे मील, अखण्ड गरीबी के दौर 1951 में पेट काटकर, कामराज ने शुरू किया था। शिक्षा बढ़ी, तो तमिल लोग प्रोफेशनल बने, आये, उद्यमी बने। वहां ऑटो हब बना, इंडस्ट्री हब बना। 

तो जाकर समृद्धि आयी। राहुल ठीक सोच रहे हैं। पर आप जैसे धूर्त चतुराई से, राहुल पर वामपन्थ का "अपराध" चिपका देते हैं। 
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आपका मानना है, कि कि रोड रस्ते बनेंगे, तो समृद्धि आएगी, तब शिक्षा पर खर्च हो। लेकिन राहुल रोड बनने नही देते। वे भट्टा परसौल गए। 

प्रोफेसर साहब। वो नियमगिरि भी गए। बयान दिए,मायावती नही, या नवीन के खिलाफ नही, अपनी ही सरकार के खिलाफ। 

सड़क बनाने के खिलाफ नही, जमीन के जबरिया- कौड़ी के मोल, अधिग्रहण के खिलाफ। तब, चौगुने मुआवजे का कानून आया। 

आप सरकार हो, माई बाप नही की जब मर्जी आये गरीब किसानों की जमीन किसी प्रोजेक्ट के नाम से कब्जिया लो, मुंह पर चवन्नी फेंक दो। 

लो, मगर विनम्रता से मांगकर, 
और दो चौगुनी कीमत।
फिर बनाओ बिंदास रोड, हाइवे, एयरपोर्ट। 

हिंदुस्तान की धरती, किसी के बाप की नही। सरकार की बपौती हरगिज नही। राहुल ने हिम्मत की अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ बोलने की, उस हिम्मत को सलाम। 

लेकिन धूर्त मण्डल ने बात महीनता से पलटकर, मायावती की महानता चिपकाने का मौका लपक लिया।
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पर असल मे लाइन बीजेपी की पीट रहे हैं। प्रोफेसर कहते है- देश मे पैसा न होगा, तो "ट्रिकल डाउन" कैसे करोगे?? 

ओह हो। 

ये ट्रिकल डाउन कैसे होता है जनाब?? दो फेवरिट उयोगपतियो की जेब भरने से?? जमीन, सब्सिडी, कर्ज माफी, टेक्स छूट देने से?? 

क्या प्रोडक्ट बनाएंगे वो, खरीदेगा कौन-
जब जनता के पास पैसा नही?? 

मनरेगा, या न्याय योजना। हां माना मुफ्त के पैसे है। लेकिन इससे जनता के पास लिक्विडिटी होगी, वह रिटेलर के पास कस्बों में आएगी, वहां से शहरों के थोक व्यापारी तक, वहां से मेट्रो के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में। 

यह पैसे का बॉटम अप प्रवाह है, जो समूचे बाजार औऱ अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर लाता है। इसमे पैसा देश मे, जनता के बीच बहता है। 

ट्रिकल डाउन, आप लुटेरों की बनाई फर्जी थ्योरी है। मुनाफे को ऑटोमेशन मे खर्च करते है, रोजगार नही देते। माल महंगा बेचकर धन विदेशों में छुपाते है। 

हमारा ही पैसा "विदेशी FDI" बनाकर, वापस यहां लाते हैं। याने पैसा इस अर्थव्यवस्था से बाहर निकल जाता है। यही 10 साल से हो रहा है। नहीं चाहिए। 

अपनी थ्योरी अपने पास रखिए। 
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अंत मे पर्सनल अटैक। 

कहते है- राहुल ने शेयर खरीदे है, लेकिन उद्योपतियों का विरोध करते हैं। राहुल ने स्टेट बैंक और एलआईसी के शेयर खरीदे हैं??

या अम्बानी अडानी के??
प्रोफेसर, बताना भूल गए। 

पर शेयर शब्द से उन्होंने आपको बता दिया कि राहुल ढोंगी हैं। वे वेल्थ क्रिएशन को डिस्टर्ब करते हैं। 

नहीं!!! 

वे क्रोनी कैपिटलिज्म को डिस्टर्ब करते हैं प्रोफेसर साहिब। उन्ही को, जिनसे आपकी बकैती की दुकान, 

आपका घर चलता है। 
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हिंदनबर्ग का जिक्र किया। वह शार्ट सेलर हो, या ब्लेकमेलर, उसमे आंकड़े खुद, अडानी इंडस्ट्रीज के द्वारा दी गयी एनुअल रिपोर्ट्स से उठाये गए थे। 

अडानी उल्लेखित गड़बड़ियों को न असत्य साबित न कर सके, न कोई एक्सप्लेनेशन दिया। कायदे से अमेरिका होता, तो वे आपराधिक प्रकरण में अभियोजित होते।
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अंत मे नेहरू। 

इंदिरा को नेहरू न सांसद बनाया, न मंत्री। वह फर्स्ट लेडी की भूमिका निभाती थी, उसके कारण दूसरे हैं। मण्डल झूठ बोल रहे हैं। 
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राहुल की ट्रेनिंग सड़को पर हो चुकी है। और उन्हें सड़को पर ही रहना चाहिए। 

बहुत मनमोहन और रघुराम मिलेंगे। 
दूसरा राहुल नही मिलेगा। 

@Profdilipmandal जान लें।



प्रिय मनीष, आपका आलेख पढ़ा. फैक्ट की कुछ अशुद्धियां हैं. आपका सार्वजनिक अपमान नहीं करना चाहता. इसलिए पूरी लिस्ट लिख नहीं लगा रहा हूं. सिर्फ एक बात बताता हूं. राहुल गांधी ने सरकारी कंपनियों नहीं, पूंजीपतियों की कंपनी में इन्वेस्टमेंट किया है. और इसमें कुछ भी गलत नहीं है. (देखें राहुल गांधी का चुनावी एफिडेविट) 

एक बात आपने राहुल के बारे में सही लिखी है. मैं आपको जस का तस कोट कर रहा हूं.

"उन्हें सड़को पर ही रहना चाहिए। 

बहुत मनमोहन और रघुराम मिलेंगे। 
दूसरा राहुल नही मिलेगा।"

आपकी यही बात राहुल की सबसे बड़ी समस्या है. वे जिम्मेदारी से भागते हैं. सरकार चलाते हैं, पर पद नहीं लेते. ऐसे लोग देश का तो छोडिए, पार्टी का भी भला नहीं कर पाएंगे. 

प्रिय मण्डल साहब 

आपका उत्तर मिला। हम कभी आपको और कभी इसके अधूरेपन को देखते है। 
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आपको मतिभ्रम है कि चार चंडाल ही देश का शेयर मार्किट और कैपिटलिज्म है। प्लीज करेक्ट योरसेल्फ, क्योकि व्यापार जगत में इन क्रोनीज के आगे जहान और भी हैं। 

राहुल, सरकारों के अवैध समर्थन के बगैर, स्वयं आगे बढ़ने वाले उद्योगों को सपोर्ट करते हैं। उनमे इन्वेस्ट भी करते है- इसे साबित करने का आभार। 
●●
राजनीति की सीमित व्याख्या है- मंत्री बनना, गर्वमेंट चलाना.. 

"सो कॉल्ड जिम्मेदारी लेना" 

वह गांधी ने नही ली, मार्टिन लूथर ने नही ली, विनोबा भावे, जयप्रकाश ने नही ली। लेकिन क्या वे गैर जिम्मेदार थे? कमजोर थे? 

डरपोक और भगोड़े थे??? 

मान्यवर कांशीराम कभी सीएम नही बने। क्यो, भगोड़े थे, या अयोग्य थे?? 

पप्पू थे न कांशीराम??
●●
राजनीति के आयाम मंत्री पद से ऊंचे हो सकते हैं, मण्डल साहब। बड़ी जिम्मेदारी है जनता को सुनने की। 

भट्टा परसौल और नियमगिरी में जाने की। ट्रक ड्राइवरों और बढ़ईयो के सुख दुख जानने और उनके लिए पॉलिसी बनवाने की। 

राहुल पार्टी का भला न कर पाए, देश और इसकी जनता का भला कर ले, हम संतुष्ट है। 
●●
अंततः.. 

अंग्रेजो के पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे बाबा साहब ने अपने जीवन का सबसे बड़ा सन्देश, शिक्षा लेने का दिया था। 

रोड बनवाने का नही। 
तो क्या बाबा साहब, विकास विरोधी थे?? 

जवाब दें। 
●●
सार्वजनिक अपमान, बेझिझक कर सकते हैं। मै आपको अग्रिम क्षमा प्रदान करता हूँ।


Wednesday, June 12, 2024

भारतीय रेल्वे की ये दुर्दशा! क्या अब वन्दे भारत में भी ऐसा होगा?

क्या सच में अब वन्दे भारत में भी ऐसा होने लगा है?
आप देख कर चौंकिए नहीं ये वही वन्दे भारत के जिसके लिए रेल मंत्री को अपंग बना कर मोदी जी ने झंडा दिखाना शरू किया, जिसका पूरा क्रेडिट मोदी जी ने लिया।

ये अच्छी बात है कि कोई अच्छी लग्जरी ट्रेन भी भारत की पटरी पर दौड़ पाया। इसमें हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए कि भारत में सबसे पहले luxury train "दी पैलेस ओन व्हील्स" 1982 में ही राजस्थान में चली थी जो एक टूरिस्ट ट्रेन थी। 


मग़र-परंतु तो इसके साथ भी होना ही चाहिए। 
इसका फ़ायदा गरीबो को हुआ या अमीरों को?? 
जितना ज्यादा फ़ायदा अमीरों को नहीं मिला उससे ज़्यादा नुकसान गरीबो का हुआ, गरीब औऱ मिडिल क्लास लोग जैसे उसकी बराबरी करने को चाहने लगे वो अपने अस्तर को जनरल से स्लीपर, स्लीपर से ऐसी में जाने लगे तभी सरकार ने वन्दे भारत पर फोकस कर आमिर वर्ग को अपनी और खींचना चाहा, इससे हुआ क्या? गरीब लोगों को यह खुशी मिली कि ऐसा ट्रेन हमारे देश में भी चल रहा है, औऱ ये देखते ही देखते सोशल मीडिया के ज़माने में selfie point में बदल गया और आम लोगों तक सरकार ने समर्थन बटोरा। इसका भाड़ा आम लोगों के जेब से बाहर है ठीक वैसे जैसे Business Man (यानी बड़े restaurant वाले किसी समान का दाम इसप्रकार से रखते हैं जिससे कि आम लोग वहाँ ना पहुँच पाए, पहुंचे भी तो कभी एक बार अपना शौक पूरा करने) इससे धीरे-धीरे आम लोगों और अमीर वर्ग के बीच अपने आप एक रेखा तैयार हो जाता है।

Gagan Pratap ji लिखते हैं X पर
' रेलवे 🤦‍♂️ 
लखनऊ में वंदे भारत पर बिना टिकट यात्रियों का कब्जा। 
आपको बता दें कि यह इस समय भारत की सबसे अच्छी ट्रेन है। 🥺
अगर BEST ट्रेन का ये हाल है तो आप सोच भी नहीं सकते कि बाकी ट्रेनों का क्या हाल होगा😫😫'

[ इसमे कब्जा शब्द का प्रयोग किया गया है, उनको इस विषय पर सोचना चाहिए। 
उनका दुःख भी जायज है कि देश की सबसे अच्छी facility provide करने वाली ट्रेन का यदि ये हाल रहेगा तो अन्य ट्रेन का क्या ही हाल रहेगा।.] 

वन्दे भारत भी कई बार 17-17 घंटे लेट रहता है, फ़िर लोग इतना खर्च क्यूँ करते हैं वो भी इसका फ़ायदा प्राइवेट कंपनी(The Kolkata-based Titagarh Rail Systems Ltd) को मिलता है। 

मैं पूछना चाहता हूं क्या ये ट्रेन भारत सरकार अपने दम पर नहीं चला सकती थी?? 

अब मैं फ़िर वापस आता हूं अपने points पर :-
इसका गरीबो को क्या फ़ायदा मिला? 
*गरीबो का अलग class बना रहेगा जिससे दोनों के बीच असमानता दिखेगा 
*गरीबों का ट्रेन रोक कर वन्दे भारत को निकाला जाता है जिससे पता चलता है कि आम पब्लिक के समय का महत्व नहीं है? 
इसके जगह यदि ऐसा होता कि आम ट्रेन को रोका नहीं जाता और दोनों अपने तय समय में पहुंचता। 
*अच्छे ट्रेन में सुरक्षा कर्मी को रखा जाता है जबकि यह सभी ट्रेनों में रखा जाना चाहिए था? 
*क्या भारत सरकार सभी को सही से बैठ कर जाने का भी प्रबंध नहीं कर सकती है? की आम लोग अपना टिकट ले कर सभी आराम से बैठ कर जा सके। ये सभी को पता है जनरल में लोग luggage रखने के स्थान पर बैठ कर सफ़र करते हैं, और रात को तो नीचे फ़र्श पे, bathroom के बाहर सोता दिखता है। Railway विभाग इसके लिए क्या विचार करती है? 
*सभी ट्रेन में साफ़-सफ़ाई एक तरह होना चाहिए था जनरल ट्रेन में कभी फर्श गन्दा होता है तो कभी toilet, तो कभी पंखा भी नहीं चल रहा होता कभी कभी तो toilet में पानी भी नहीं रखता है। लगता है maintenance ना के बराबर होता है। क्या ये सब train ticket में include नहीं होता है? 
*क्या सभी train में पीने के लिए Railway के द्वारा authorised पानी नहीं मिलना चाहिए? जनरल को तो छोड़िए स्लीपर में भी बाहरी पानी(local water bottle) बेचा जाता है जो कि 10-15 का होना चाहिए तो वो 20 तक वसूलता है। 

कुछ लोग बोलते हैं जनरल में रुपया कम लगता है, कितना अच्छा सुविधा चाहते हो? तो इसपर मैं कहूँगा इसका रेट सरकार तय करती है तो वो हिसाब लगाकर के ही तय करते होंगे। 
[Railway को नियमित रूप से टिकट का जाँच कराना चाहिए इससे Railway को और फ़ायदा हो सकता है।] 
फ़िर मैं वापस आता हूँ आमिर क्लास पर
*जब exam का टिकट आता है तो आप क्या करते हैं? किसमें सफ़र करते हैं? 
*अचानक से तबीयत खराब हो या आपको अचानक से कहीं जाने का निर्णय लेना हो तब आप किसमें सफ़र करने आते हैं? 
*ऐसी sleeper में sheet ना मिले तब आप क्या करते हैं? 
*जब आप दिन का सफ़र कर रहे हों महज 4-5 घंटे का तब क्या आप स्लीपर लेना चाहते हैं? 
*यदि आपको अच्छी शीत, साफ-सफाई अच्छी मिले तो आप तो क्या आप जनरल में सफ़र नहीं करना चाहेंगे? 


इसमे जो भी लिखा गया है वो मेरे आँखों देखा दृश्य से उठता सवाल है? आप भी इसे रोजाना देखते हैं मग़र बोलते नहीं हैं लिखते नहीं हैं। 
बन्दे भारत की तरह इस स्तिथि की वीडियो बनाते नहीं हैं, यदि आप इसे अच्छा करना चाहें तो कर सकते हैं, इसके लिए सभी को आगे आना होगा इसपर बोलना पड़ेगा, लिखना पड़ेगा, इसपर ढेरों vídeo बनाइये और आम लोगों को इसके लिए समझाइए। 




"वंदे भारत की चमचमाती तस्वीरों को तो खूब शेयर करतें हैं @AshwiniVaishnaw जी क्या आपके आईडी में इस तस्वीर को भी थोड़ी जगह मिलेगी..? 

जंक्शन पर तिरंगा झंडा लगा देना विकास का मापक नहीं हो सकता है। देश के नागरिकों को उचित सुविधा देने में भी आप सक्षम नहीं हैं।

रेलवे में रोजगार भी ख़त्म ही कर चूकें हैं। धन्य हो आप जैसा मंत्री हमें फिर से मिला है।"


[जर्मनी की ट्रेन का ये वीडियो देखिए. वहां की जनता भेड़ बकरियों की तरह सफर कर रही है. अब सोचिए हम कितना सुख भोग रहे हैं. हमें वर्ल्ड क्लास सुविधा मिल रही है. सोचते हुए धन्यवाद जरूर कहें.]
इसमें कितने लोग आपको अमीर घर के दिखते हैं?

प्रोफेसर दिलीप मंडल औऱ प्रोफेसर लक्षण यादव क्या एक ही विचारधारा के हैं?


मत बदलना और विचारधारा बदलने में अंतर है.

दिलीप मंडल आरक्षण के समर्थन में हैं. लक्ष्मण यादव आरक्षण के समर्थन में हैं.

दिलीप मंडल जाति जनगणना के समर्थन में हैं. लक्ष्मण यादव भी जाति जनगणना के समर्थन में हैं.

जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी. प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू करना. प्रमोशन में आरक्षण. महिला आरक्षण में OBC आरक्षण लागू करना. कॉरपोरेट लूट, भ्रष्टाचार और जातीय हिंसा - जातीय भेदभाव जैसे अति महत्वपूर्ण मुद्दों पर,

दिलीप मंडल और लक्ष्मण यादव दोनों का विचार समान है.

समस्या कहाँ है ?

मुझे तो कोई समस्या नजर नही आ रही है.

दिलीप मंडल को दोषी क्यों ठहराया जा रहा है ?

जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में OBC SC ST के आरक्षण का मुद्दा उठाना क्या गलत है ?

माइनॉरिटी स्टेटस कानून - OBC SC ST आरक्षण खत्म करने का रोड़ा क्यों होना चाहिए ?

दिलीप मंडल ने नरेंद्र मोदी की तारीफ में दस लाइन कही तो कौन सा आसमान फट गया.

किसी पार्टी या नेता को समर्थन देना या उसके समर्थन में बोलना विचारधारा से समझौता नही होता है.

दिलीप मंडल और लक्षण यादव दोनों अपने मूल विचारधारा पर कायम हैं.

समस्या है नही, फिर क्यों समस्या खड़ी की जा रही है.

फ़ोटो 1 - प्रोफेसर दिलीप मंडल
फ़ोटो 2 - प्रोफेसर लक्षण यादव



मैं दिलीप मंडल के पक्ष में हूं 

मगर उन्होंने समय पर जो मुद्दे उठाना था 

उसे मुद्दे को उन्होंने नहीं उठाया है 

जब चुनाव था तब उन्होंने कुछ ऐसे मुद्दे उठाएं 

जब नहीं उठाना चाहिए था

 जो मुद्दे उठाए हैं इस मुद्दे को चुनाव के बाद भी उठाया जा सकता था

 और इसका निवारण किया जा सकता था

 इसी कारण से कुछ लोग दिलीप मंडल जी का विरोध कर रहे

Tuesday, June 11, 2024

मतलब नही महंगाई से ना ही बेरोजगारी से !!

मतलब नही महंगाई से
बेपरवाह बेरोजगारी से.. 

कभी सोचा आपने, की मोदी सरकार कभी महंगाई और बेरोजगारी को एड्रेस क्यो नही करती?? 

इसके दो पहलू है। 
●●
पहला- पैसा!!! 

भाजपा, पैसों की लालची पार्टी है। एक दौर में बनियों का दल कहलाने वाले दल की बेसिक तासीर यही है- चुपचाप स्वीकार कर लीजिए। 

पैसा हर मर्ज की दवा है।
और मोदी ब्रांड राजनीति में इसकी जरूरत असीम हैं। 

साल में 5 शानदार चुनाव लड़ने के लिए, मीडिया खरीदने के लिए, होर्डिंग, पोस्टर, पैम्फलेट से देश को पाट देने के लिए, 

सांसद विधायक खरीदने के लिए,
रिजॉर्ट बुक करने के लिए...

बूथ मैनेजमेंट के लिए, रैलियां करने के लिए,
तगड़ा धरना प्रदर्शन करने के लिए, कार्यकर्ताओ की विशाल फौज को लगातार एंगेज्ड रखने को छोटे छोटे कार्यक्रम ऑर्गनाइज करने के लिए...

पैसा एसेंशियल है। 
यह मजदूरी करके नही आता। 
●●
आरएसएस से लेकर बजरंग दल तक, विवेकानंद फाउंडेशन से लेकर वनबंधु परिषद तक, भाजपा के हजारों आनुषंगिक संगठन हैं।

और जिस मजबूत संगठन के आप कसीदे पढ़ते हैं, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के उन कार्यकर्ताओं का काम, चना फांक कर नही चलता।
●●
70 साल सत्तावान रही कांग्रेस के पास, आपके शहर में एक किराए की झोपड़ी है। भाजपा के ऑफिस में तीन तल्ले हैं। 

सैंकड़ो कम्यूटर हैं, वर्कर है, डेटा है, कालिंग है, सॉफ्टवेयर है, मोनिटरिंग है, कंसल्टेंट हैं, सर्वे है, कभी खत्म ब होने वाला काम है। 

कांग्रेस के पास बूथ पर वर्कर नही, भाजपा की छतरी हर जगह है। एक बूथ पर एक दिन टीम बिठाने का का खर्च लाख रुपये होना, सस्ता एस्टिमेट हैं। इसमे रात को वोटरों में बंटे पैसे शामिल नही। 
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आईटी सेल है, कम्युनिकेशन प्रोपगेंडा की टीम है, कण्टेट क्रियेटर हैं।

खरीदा और कब्जाया हुआ डेटा है।इलेक्शन कमीशन से जुगाड़े गए, और दवा दुकानों, रेस्ट्रोरेंट की चेन, होटलों, बिग बाजारों में बिलिंग के समय लिखवाए गए आपके फोन नंबर्स हैं। 

आपके धार्मिक-पोर्न- पॉलीटकल ग्रुप में फार्वर्ड भेजने वाले वर्कर हैं।ये वेतनभोगी लोग हैं। 

आपकी पोस्ट पर ट्रोल करने आई फर्जी आईडी को उस कमेंट के लिए महज 2 रुपये मिले। अब सोशल मीडिया पर हर दिन किये गए कमेंट्स का खर्च जोड़िये। 
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कौन देगा इतना पैसा- कारपोरेट
क्यूँ देगा- बिजनेस पाने के लिए

मुनाफे के लिए, कम से कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा से ज्यादा कमाने के लिए। फ्री लैंण्ड, टैक्स छूट, सस्ता कर्ज, कर्ज की माफी पाने के लिए। 

फेयर कॉम्पटीशन के लिए नही, वह मोनोपॉली के लिए पार्टी को पैसे देगा। बैक डोर ठेके के लिए देगा। 2रु की दवा, राशन, कपड़े, कॉमेंटिक्स, सुविधा, सेवा को 200 में बेचने के लिए देगा। 
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सरकार महंगाई कन्ट्रोल करे, तो कारपोरेट का मुनाफा कम होगा। फेयर कम्पटीशन को बढ़ने दे, तो मुनाफा कम होगा। ऑटोमेशन और ठेके की जगह जॉब्स बढाने की पॉलिसी बढ़ाये- कारपोरेट का मुनाफा कम होगा। 

हर वो नीति, हस्तक्षेप, जो जनता की जेब में पैसा बचाएगी, उतना पैसा, उस कारपोरेट की जेब मे जाने से रह जायेग।

यह उसका नुकसान है। इस नुकसान के लिए वह पार्टी को फंड तो करेगा नही। और जिस तरह का "प्रभावी सांगठनिक कौशल" बीजेपी का है, वह फंड के बगैर शून्य है। 

एक बार सोचकर देखिए।

जितने पैसे में कोई दल, पूरे जिले की सब सीटें लड़ लेता है, भाजपा उतना एक सीट पर खर्च करती है। यह सिर्फ इलेक्शन के वक्त दिखा, भाजपा इसे 24X7 बेसिस पर चालू रखती है। 
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सिम्पल ऑब्जर्वेशन है। आपकी आंखों देखी है। लेकिन लोग सोचते नही। 

कायदे से, बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार का बेरोजगार का नजला, तो चुनावो में मिलना चाहिए। पर आप वोट बेरोजगारी और महंगाई पर नही देते। 

राम, मुसलमान और पाकिस्तान पर देते हैं।काफी पैसे खर्च कर, आपको सीखा दिया गया है कि सिर्फ रामद्रोही, पाकिस्तानी, और मुसलमान ही भाजपा के खिलाफ हो सकते हैं।

काफी पैसा खर्च कर आपको रटाया गया कि कारपोरेट फंड्स पर सवाल उठाने वाले वामपन्थी हैं। पूंजी विरोधी है, रूसी चीनी नक्सली हैं। 

और फिर पाकिस्तानी, चीनी, नक्सली आप नही है, इसलिए भाजपा को वोट करते हैं। हिन्दू हैं, रामभक्त हैं, बीजेपी को वोट देंगे ही। 
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भाजपा को इसलिए न महंगाई की चिंता है, न बेरोजगारी की। उसे अपना संगठन पालना है, आपके बच्चे नही।

उसकी प्राथमिकता, महंगाई बढ़ाए रखना है। मुनाफा, फंडिंग बढ़ाये रखना है। 

और आपको पगलाए रखना है। 
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इस पोस्ट के नीचे भी ऐसे कमेंट करने वाले आएंगे, जिन्हें मिलने वाले 2 रुपये, उसी मुनाफे से मिल रहे है.. जो उनके बापो को रोटी, कपड़ा, तेल, दवा - बेजा कीमत पर बेचकर वसूला गया था। 

इन जैसो क, ऐसे वोटरों के रहते, मोदी बहुमत या अल्पमत में शपथ लेते रहेंगे। और ठसके से कहेंगे। 

मतलब नही महंगाई से
बेपरवाह हूँ बेरोजगारी से..

Thursday, June 6, 2024

झूंझनू का झुनझुना- जगदीप धनखड़

झूंझनू का झुनझुना..  

राजस्थान में झूंझनू शेखावटी का पुराना शहर है। कभी कायमखानियो की राजधानी रहा और इसी इलाके में वह खेतड़ी स्टेट भी आती है, जहां से नंदलाल नेहरू कभी दीवान हुआ करते थे।

यहाँ कभी स्वामी विवेकानंद के चरण पड़े, और रामकृष्ण मिशन को बड़ी मदद मिली। 

1951 जब पहली बार भारत के इलेक्शन होने वाले थे, एक जाट परिवार में जगदीप साहब का जन्म हुआ। 
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जगदीप वो फिल्मों वाले कॉमेडियन नही, मैं बात धनखड़ साहब की कर रहा हूँ, जो राज्यसभा के धड़ाधड़ सस्पेंशन को लेकर सुर्खियों में है। जिनका कॉमेडी बनाते कुछ माननीय, पकड़े गए हैं। 

बहरहाल झूंझनूरत्न धनखड़, पेशे से वकील रहे है, और आपको जानकर अचरज होगा कि वे संवैधानिक मामलों के वकील रहे हैं। 

झूंझनू बार काउंसिल में लम्बे समय तक वकालत करने के बाद, वे वीपी सिंह के जनता दल से जुड़े। 

1989 में चुनाव जीता, झूंझनू से सांसद बने।इसके बाद झूंझनूरत्न, अलग अलग पाजेब में घुंघरू की तरह बजते रहे हैं।  
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वीपी सरकार के गिरते ही, चंद्रशेखर सरकार बनी। चार माह की इस सरकार में, वीपी को छोड़कर आये प्रथम बार के सांसद धनखड़, सीधे संसदीय कार्य मंत्री बने।

चार माह में वो सरकार धूल चाट गयी, तो वे कांग्रेस में लटक लिए। 1991 में अजमेर से चुनाव लड़ा, और बुरी तरह हार गए। 

फिर 1993 में कांग्रेस के टिकट पर किशनगढ़ से विधायकी में हाथ आजमाया, और जीत गए। पर कांग्रेस हारी, शेखावत मुख्यमंत्री बने।

1998 में कांग्रेस तो जीती, गहलोत पहली बार सीएम बन गए। मगर पूर्व केंद्रीय मंत्री धनखड़, विधायकी में भी खेत रहे। उन्हें भाजपा के नाथूराम ने हरा दिया।
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1998 में वे झूंझनू से सांसदी लड़े, और हार गए। अब कांग्रेस में बजने का वक्त खत्म हो चुका था। 

2003 में हवा का रुख भांपा और भाजपा का झुनझुना बजाने लगे। 14 साल में यह चौथा दल था। 

पर यहाँ वे बियाबान में खो गए। अगले 17-18 साल वे पार्टी की लीगल सेल में मामूली काम करते रहे कि फिर, एक दिन उनके भाग से छींका टूटा।
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भोले भंडारी ने उन्हें उठाया, और झाड़ पोंछकर सीधे राजभवन में टपका दिया।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में वे बजे, और क्या खूब बजे।

दरअसल, इतिहास में अब तक राज्यपाल को केवल नाममात्र का मुखिया माना जाता रहा। मगर 2019 के बाद का दौर अलग है। 

राज्यपाल का ऑफिस, पार्टी का कार्यालय और निर्वाचित सरकार के कामो को अड़ंगे लगाने का अड्डा बन गया है। राज्यपाल, विंधानसभा के पारित कानूनों को येन केन लटकाए रखने, मुख्यमंत्री से वाद विवाद करने और ब्यूरोक्रेसी को पैरलल निर्देश देने का काम करते हैं।

इन बिंदुओं पर धनखड़ साहब ने हाई स्कोर हासिल किया। पश्चिम बंगाल राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय के बीच बदसूरत बहसों का गवाह बना। 

यहां तक कि रोज रोज उन्हें मेंशन करके ट्वीट करने से तंग आकर ममता बैनर्जी ने अपने ट्विटर पर उन्हें ब्लॉक कर दिया। 
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जाहिर है, इतिहास में यह उपलब्धि किसी सिटिंग राज्यपाल ने आज तक हासिल नही की थी। वे तो उपराष्ट्रपति के पद पर योग्य कैंडिडेट के लक्षण थे। सो उन्हें इस पद से नवाजा गया।

ये पद, यूँ तो सम्विधान में, स्टेपनी की तरह पीछे बैठे रहने के लिए बनाया गया है। पर उपराष्ट्रपति को व्यस्त रखने के लिए यह व्यवस्था है कि वे राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं। 
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अमूमन उपराष्ट्रपति सदन में कम बैठा करते थे। उपसभापति ही यहां का काम धाम सम्हालते। मेरी स्मृति में प्रागेतिहासिक काल से नजमा हेपतुल्लाह भारत की राज्यसभा की उपसभापति हुआ करती थी।

पर अब धनखड़ दिन भर सदन में बैठते हैं, मखौल बनवाते हैं, कभी ट्रोलिंग से दुखी होते हैं, कभी मिमिक्री से। समय बचे तो सांसद सस्पेंड भी करते हैं। 
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ये संस्थाओं और संवेधानिक पदों पर गिरावट का स्वर्णयुग है। पतन ही उत्थान का सर्वोत्तम मार्ग निर्धारित किया गया है। ऐसे में धनखड़ साहब कुछ बरसों बाद राष्ट्रपति बनाये जा सकते हैं। 

बहरहाल कभी राजीव के खिलाफ खड़े वीपी के साथ रहे, फिर उनके खिलाफ खड़े चंद्रशेखर के साथ रहे, फिर उनके खिलाफ रही कांग्रेस के साथ रहे, फिर उसके खिलाफ रही भाजपा के साथ खड़े पूर्व सांसद धनखड़... 

अब सांसदों के खिलाफ खड़े हैं।

141 नाबाद की पारी खेल रही सरकार के झुनझुने बनकर वे इतिहास में नाम कमा चुके हैं। सांसदों और जनता से सम्मान की गुहार लगाते झूंझनू के तत्कालीन सांसद की ये पुरानी तस्वीर है। 

जिसे देखकर दुष्यंत कुमार की पंक्तियां याद आती हैं - जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में, 

हम नहीं हैं आदमी, 
हम झुनझुने हैं ..

ओम बिरला के रहते, संसद के माथे पर काला दाग...!

संसद के माथे पर काला दाग .. !!!

ओम बिड़ला को जब याद किया जाएगा, तो लोगों के जेहन मे भावहीन सूरत उभरेगी। सदन के सबसे उंची गद्दी पर बैठा शख्स, जो संसदीय मर्यादाओं को तार तार होते सदन मे अनजान बनकर मुंह फेरता रहा। 

मावलंकर, आयंगर, सोमनाथ चटर्जी और रवि राय ने जिस कुर्सी की शोभा बढाई, उसे उंचा मयार दिया.. वहीं ओम बिड़ला इस सदन की गरिमा की रक्षा मे अक्षम स्पीकर के रूप मे याद किये जाऐंगे। 
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पांच साल तक, ओम बिड़ला के दौर मे संसद रबर स्टाम्प बनी रही। 

सदन बहस करने से बचने का अड्डा हुआ... 
सत्ता पक्ष कुछ भी कहे, अभय.. 

और विपक्ष को मुश्किल से दिये मोैको मे भी मूक बना देने वाले अध्यक्ष ओम बिड़ला थे। 

कही सामान्य कानून मनी बिल बनकर पास होते रहे तो कभी सांसदों को सस्पेंड़ कर विपक्षहीन कार्यवाही चलती रही। जिसकी सदारत मे सदन के भीतर मे बैठ जा मुल्ले गूंजा, और अध्यक्ष ने आंखें फेर ली।   
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सदन जितना आंखों के सामने चलता है, उससे ज्यादा परदे के पीछे। कौन से सवाल लिए जाऐंगे, कौन से रिजैक्ट होे। 

कौन सा सांसद बोलेगा, किसे मौका नही देंगे। किसके घंटे भर की सस्ती जोकरपंथी, संसद के इतिहास मे लिखी जाएगी, और किसके पांच मिनट के भाषण को कार्यवाही से मिटा दिया जाएगा। 

और संसद का टीवी किसके उपर कैमरा ताने रखेगा, और कब वक्ता के पूरे दस मिनट के भाषण मे संसद के झूमर पर टिका रहेगा?? 

सब तय करने का अधिकार ओम बिड़ला को था। 

और वे, जो सदन के अभिभावक बनाऐ गए थे, दलो के दलदल से उपर, न्यायाधीश की कुरसी से नवाजे गए थे, उस पद की गरिमा से पतनशील हो, 

मामूली पिटठू बनकर रह गए। 
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सबसे ज्यादा शर्मनाक, और खतरनाक काम था - विपक्ष को बाहर कर, खाली सदन से नई न्याय संहिता पर मुहर लगवाना। 

150 साल पुराने, ट्राइड, टेस्टेड और इवॉल्यूशन की नैचुरल प्रक्रिया से बनी भारत की संपूर्ण न्याय प्रणाली को आमूलचूल बदलने वाला बिल, मिनटों मे पास हो गया। 

बिना बहस, यह अधूरा, ड्रेकोनियन, दमनकारी, अंग्रेजों के कानून से कठोर और एन्टी डेमोक्रेसी प्रावधानो वाली भारतीय न्याय संहिता, राष्ट्रपति से दस्तखत हो चुकी है। किसी भी दिन नोटिफाई होकर लागू होगी। 

और उसके बाद गले से आवाज भी निकालना, छह माह की बिना ट्रायल जेल का सबब बनेगा। आम कानून को पीएमएलए बना दिया गया है। प्रावधानों को ऐसा महीन बुना गया है कि जब जहां मर्जी हो, एक थानेदार आपका जीवन नष्ट कर देगा। दूसरी ओर आपके न्याय की गुहार, सुनवाई अयोग्य मानकर ठुकरा देगा। 

यह न्याय संहिता, प्राकृतिक न्याय और सुनवाई के अधिकारों से चतुराई भरा महीन खेल करती है। इस कानून के लागू होने के बाद भारत जानेगा, कि असली मजबूत सरकार, असली पुलिस राज और सराकरी आतंक क्या होता है। 

और जब कोई हिंदुस्तानी इसमे फंसेेगा, तो इस पार्टी का समर्थक रहा हो या विरोधी - वह मोदी-2 और ओम बिड़ला को दिल की अनंत गहराइयों से..

सदियों तक शाप देगा। 
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सुनते है कि स्पीकर पद की मांग, तेलगूदेशम ने की है। यह शुभ संकेत है। एक हंग पार्लियामेण्ट मे विपक्ष की आवाज, संसदीय मर्यादाऐं का हनन.... 

दलो केे भीतर तोड़फोड, सांसद खरीदी और नीच तकनीकों के इस्तेमाल होने की छूट देने के लिए, किसी ओम बिड़ला जैसे भाजपाई को संसद की आसंदी नही मिलनी चाहिए। 

जीएमसी बालयोगी जैसे हरदिल अजीज, संतुलित लोकसभाध्यक्ष देने वाले तेलूदेशम और नायडू पर मोदी गैंग के भाजपाईयों से ज्यादा भरोसा किया जा सकता है। 

खुद तेलगू देशम, जेडीयू और दूसरे दलो की तोड़फोड़ की तमाम गुंजाइश खत्म हो जाएगी, अगर सदन की बागडोर एक संतुलित मष्तिष्क वाले क्षेत्रीय दल के हाथ मे हो। 
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नई संसद के सांसद, वे पक्ष के हो या विपक्ष के, याद रखे - बंदर के हाथ माचिस नही होनी चाहिए। 

और संसद की चाभी किसी बिडला के हाथ नही होनी चाहिए। आसंदी पर हमारी और उनकी भलाई इसी मे होगी। 

देश को और ओम बिड़ला नही चाहिए।    
लोकसभा के माथे पर, और काले दाग नहीं चाहिए।

Thursday, May 30, 2024

क्या आदिवासी समाज नक्सल है? All eyes on AADIVASI



आप लोग All Eyes on RAFAH या All Eyes on POK ट्रेंड करें, मुझे कोई दिक्कत नही है.

भारत से 4,000 किलोमीटर दूर दूसरे देश की आंतरिक समस्या पर हमारे लोगों में बहुत रुचि है. और होनी भी चाहिए. जहां कहीं भी शोषण और अत्याचार होता है आवाज उठानी चाहिए.

लेकिन हमारे देश के भीतर ही आदिवासी बहुल इलाकों में आदिवासियों को नक्सली बताकर मारा जा रहा है. उनकी ज़मीनी छीनकर कॉरपोरेट जगत को दी जा रही है. कॉरपोरेट जगत खनिज संपदा लूटकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं,

और यह सब आदिवासियों को कुचलकर किया जा रहा है.

आदिवासियों पर किया जाने वाला शोषण आज तक कभी किसी न्यूज़ चैनल पर राष्ट्रीय खबर नही बना.

गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने बस्तर क्षेत्र में कई सालों तक काम किया है. उनका कहना है CRPF आदिवासियों को नक्सली बताकर मार देते हैं. बच्चों को भी नही छोड़ते. और यह सब गांव खाली कराने के नाम पर किया जाता है ताकि आदिवासियों की ज़मीन कॉरपोरेट को दी जा सके.

ALL EYES ON ADIVASI भी ट्रेंड होना चाहिए. हमारी संपन्नता, विकास और आधुनिकता, आदिवासियों को कुचलकर हासिल नही की जानी चाहिए.

Photo : TRIBAL WOMEN MILLION DOLLAR SMILE.

क्या सच में एलविश यादव पगला गया है?



आज आपको बताता हूं कि ध्रुव राठी और एलविश यादव में क्या अंतर है? और आपको यह भी बताऊंगा कि एलविश यादव को देखकर आपके बच्चों पर क्या फर्क पड़ेगा और ध्रुव राठी को देखकर क्या असर पड़ेगा?

देश में भीषण गर्मी पड़ रही है तो उस गर्मी के पीछे की वजह बताने के लिए ध्रुव राठी ने एक वीडियो बनाई उस वीडियो में ध्रुव राठी ने 

Trade winds 
El Nino 
La Nina 

जैसे तमाम साइंटिफिक टर्म्स बताकर समझा रहे हैं वहीं 

एलविश यादव की आज की ही वीडियो में वो बोल रहा है कि 

ये भगवान ने क्या कर रखा है यार, भगवान हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? टेंपरेचर 45, 46, 50 डिग्री पहुंच रहा है।

ध्रुव राठी अपने फॉलोअर्स को एक्चुअल साइंटिफिक रीजन बता रहा है गर्मी का, जबकि एलविश यादव ने अपने फॉलोअर्स को गर्मी बढ़ने का कारण भगवान को बताया है।

ईश्वर आस्था का विषय हैं मगर यहां एलविश यादव उन्हें गर्मी बढ़ने का रीजन बता रहा है।

पंचायत Season 3 आपको कैसा लगा?


Panchayat- 3 Review 
पहला एपिसोड- महा स्लो, दूसरा एपिसोड- बोरिंग, तीसरा एपिसोड- लास्ट में जाकर मामूली सा इंट्रेस्टिंग। चौथा, पाँचवा, छठा, सातवाँ एपिसोड वापस पुराने पंचायत के जैसा। मतलब अच्छा, काफ़ी अच्छा।

इस बार पंचायत के साथ दिक़्क़त शायद ये रही कि इसमें “प्रधानमंत्री आवास योजना” को अप्रत्यक्ष रूप से दिखाया गया। यूट्यूब के चलते चूँकि ब्रांड डील्स, और मार्केटिंग के लोगों से भी मिलना-जुड़ना हुआ। इसलिए इसकी संभावनाएँ लगती हैं कि पंचायत के सीजन-3 में सरकारी स्पॉन्सरशिप का पैसा लगा। अन्यथा ऐसे सीधे बिना पैसे के कोई प्रमोट नहीं करता। इतना तो समझ आता ही है। शुरुआती तीन एपिसोड बोरिंग होने का कारण यही है। प्रधानमंत्री आवास योजना को फिट करने में कहानी नहीं बन सकी। दूसरा- उप प्रधान @malikfeb जिन्हें लोग हंसने, खेलने गुदगुदाने के लिए देखना चाहते हैं। उन्हें शुरुआती 3 सीजन में रुलाने में ही खर्च कर दिया गया। एक सही आदमी को ग़लत काम लंबे समय तक खिंचाया। ओवरऑल जितना सीरीज़ निर्माता अपनी इस सीरीज़ से आत्मीय तौर पर जुड़े हुए हैं। उतना ही दर्शक के रूप में हम भी उनके काम से इमोशनली जुड़े हुए हैं। पंचायत अब सीरीज़ ही नहीं बल्कि भावनाओं का एक सामूहिक मिलन है। बाक़ी के दो सीजन इतने अधिक अच्छे रहे कि तीसरा सीजन उसके आगे हल्का पड़ रहा है। हालाँकि पंचायत के दर्शक होने के नाते सभी एपिसोड देखे, अन्यथा शुरुआती तीन एपिसोड ने भयंकर बोर किया। लेकिन अंत तक आठवाँ एपिसोड आते आते उस बोरियत की भरपाई हुई। कुल मिलाकर अच्छा सीजन है। हालाँकि शुरुआत में इतना बोर कर दिया कि बाक़ी एपिसोड के अच्छे होने के बावजूद प्रशंसा के लिए दिल उतना खुल नहीं पा रहा जितना कभी पंचायत के पहले दो एपिसोड की प्रशंसा की। पंचायत के डायरेक्टर और लेखक पर अब काम अतिरिक्त बढ़ चुका है। उनसे अपेक्षाएँ अधिक बढ़ चुकी हैं। उन्होंने पिछले दो सीजन में इतना अच्छा काम कर दिया है कि अब दर्शक के रूप में उस बेहतरीन काम में कुछ भी उन्नीस बीस हम नहीं चाहते। पंचायत में लास्ट में गोलीबारी के जो सीन दिखाए वह पंचायत को गैंग्स ऑफ़ वासेयपुर बनाते हैं। संभवतः पंचायत की खूबी उसके पंचायत होने में है। उस निर्दोषपन को बचाए रखने में ही डायरेक्टर पंचायत के तत्व को बचा पाएँगे। बहुत हल्की हल्की शिकायतें हैं। बाक़ी सब प्रशंसा। पंचायत के प्रत्येक करेक्टर और उसकी एक्टिंग की मुक्त कंठ से प्रशंसा। व्यक्तिगत रूप से मैं- उप प्रधान, प्रधान, सहायक सचिव की एक्टिंग का फैन हूँ। पंचायत की बाक़ी टीम के भविष्य के लिए शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ मेरी आलोचना को वे व्यक्तिगत नहीं लेंगे।

#Panchayat #AmazonPrime

Wednesday, May 29, 2024

हार्दिक पांड्या और सर्बियन मॉडल नताशा के बीच तलाक का कारण क्या हो सकता है?



क्रिकेटर हार्दिक पांड्या सर्बियन मॉडल नताशा के साथ रिश्ते में आने से पहले एक बंगाली मॉडल लिशा के साथ लिव इन रिलेशनशिप में था।जब फेम मिली तो उस ने ब्रेक अप किया और अभिनेत्री एली अवराम के साथ लिव इन में रहने लगा।इसी दौरान नताशा भी अभिनेता अली गोनी जो आजकल ऋतिक रोशन की भूतपूर्व पत्नी सुजान के साथ लिव इन में रहता है उस के साथ लिव इन में रहती थी।फिर उन का ब्रेक अप हुआ और उस ने कारोबारी सेम मर्चेंट के साथ रहना शुरू किया। सैम की ही एक पार्टी में नताशा और हार्दिक मिले।फिर दोनो की मुलाकाते बढ़ी और दोनो ने अपने अपने पार्टनर के साथ ब्रेक अप किया ।दोनो एक साथ रहने लगे ।

फिर नताशा प्रेगनेंट हुई।हाला की उस ने शादी का जोर नही डाला था फिर भी हार्दिक ने शादी की।अब आप लोग को ये बात हजम न हो लेकिन भारत में काले या सांवले लोगो को गोरे बालक का मोह तो रहता ही है ! आम तौर पर कैथोलिक सर्बियन या रशियन लड़किया पहले चाहे जितनी वाइल्ड हो,शादी के बाद टिपिकल हाउस वाइफ बन जाती है।नताशा भी बनी।हार्दिक लड़कीबाज़ है ये बात ओपन सीक्रेट है।हार्दिक ने नताशा की प्रेगनेंसी के बाद नताशा के साथ शादी की।ये कम था इस के चलते पिछले साल दोबारा उस ने नताशा के साथ धूम धाम से ब्याह रचाया था ।फिर पिछले साल के मानसून में लंदन में एक लड़की के साथ नताशा ने हार्दिक को पकड़ा था।जब रिश्ते में बच्चा हो जाए न तो बहुत सारी चीजे एडजेस्ट हो जाती है।बच्चे के चलते नताशा ने वो मामला बढ़ाया नही।अब उस के बाद हार्दिक सुधरा या नही इस बात पर तलाक की खबरे निर्भर करती है।

और एक पीआर खबरे फैला रहा की नताशा इतने पैसे लेगी एंड ऑल,कोर्ट में बैठे बूढ़े जज मूडी होते है लेकिन पागल नही ! पीड़िता के पास जरूरत की ठोस वजह , उस के पार्टनर ने शादी में धोखा किया इस के पुख्ता सबूत या शारीरिक हिंसा के सबूत ये तीनो में से किसी भी खास चीज के सबूत न हो तो कोर्ट औरतों की नही सुनती ! बॉलीवुड के मशहूर तलाक जिस में पत्नी को दबाकर पैसे मिले जैसे की आमिर और किरण का तलाक या ऋतिक और सुजैन का तलाक।दोनो की अपनी वजह है।आमिर और किरण ने सिर्फ और सिर्फ अपनी इस्टेट को सिक्योर करने के लिए तलाक लिया है।रहते दोनो साथ ही है ।ऋतिक को सूजन ने एक अभिनेत्री के साथ पकड़ा था ।फिर उन का तलाक हुआ तब बातचीत के साथ प्रॉपर्टी बांटी गई आउट ऑफ कोर्ट जिसे कोर्ट में सिर्फ अप्रुव करवाया गया ।आज भी वो लोग अच्छे दोस्त है और अपने अपने पार्टनर के साथ मजे कर रहे ।बच्चो के नाम पर प्रॉपर्टी सेटल कर रहे !भूषण कुमार और दिव्या का सेम सीन है।भूषण ने सरे आम दो लड़कियों को रखा है। उस में से एक नंबर वन आइटम गर्ल है और दूसरी को आप भाभी २ के नाम से जानते है ! लेकिन दिव्या जानती है की भूषण अपने बच्चे से बहुत प्यार करता है इसलिए वो तलाक नहीं ले रही ।

मोहमद शामी बाद में चाहे जितना बड़ा प्लेयर बना हो या जो भी हो,कोर्ट में उस की शातिर पत्नी ने शामी की हिंसा और बेवफाई के सबूत पेश किए थे ।आजकल कोई भी असली नकली खबर या अफवाह देख कर लोग आसानी से प्रतिक्रिया दे देते है लेकिन चीजे जैसी दिखती है वैसी होती नही है !

हार्दिक पांड्या ने शादी से पहले बच्चा किया
हार्दिक पांड्या ने पहले कोर्ट मैरिज की
हार्दिक पांड्या ने फिर क्रिश्चियन रीति रिवाज से शादी की
हार्दिक पांड्या ने फिर हिंदू रीति रिवाज से शादी की

वैसे तो शादी होने पर अपने पार्टनर के साथ सब इन्वॉल्व होते हैं मगर हार्दिक पांड्या ने इसे तरह तरह के उत्सव मना कर और भी बहुत complicated बना लिया था।

इतना सब होने के बाद हार्दिक पांड्या की मनोदशा का अंदाज़ा उनके सिवाय और कोई भी नहीं लगा सकता है।
जिस मां के नाम प्रॉपर्टी बना रहा है शादी से पहले बच्चा करते मां का खयाल नहीं आया क्या।

पति पत्नी का तो चांस 1% है, भाई भाई का संपति विवाद तो युगों से देखा है।
अब तो माएं भी अधिकार हड़प लेती है, वैसे भी उनका रिश्ता तो  शुरू से अटपटा था। 
हार्दिक को देखकर लग रहा की प्रेगनेट करने के केस से बचने के लिए शादी कर ली फिर 8 महिने की गर्भवती पत्नी से हिन्दू रीति रिवाज से शादी कर ली। तब मां की याद और बाप की इज्जत का खयाल नहीं आया होगा उसको।

Post Credit: Aradhya Yadav

Friday, May 10, 2024

मोदी जी अपने कार्यकाल में कितनी सरकारी कंपनियां बनाई??



जवाहरलाल नेहरू ने 33 सरकारी कंपनी बनाई.

धरती के लाल, लालबहादुर शास्त्री ने अपने छोटे से कार्यकाल में 5 सरकारी कंपनियों का निर्माण किया.

इंदिरा गांधी ने सरकारी कंपनी बनाने में अपने पिता को भी पीछे छोड़ दिया. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए 66 सरकारी कंपनी बनाई.

मोरारजी देसाई ने 9 और राजीव गांधी ने 16 सरकारी कंपनी बनाई.

न्यायप्रिय वीपी सिंह ने 2 और पीवी नरसिम्हा राव ने 14 सरकारी कंपनी का गठन किया.

एच डी देवी गौड़ा 3, आई के गुजराल 3 और अटल बिहारी वाजपेयी ने 17 सरकारी कंपनी का गठन किया. लेकिन 7 बड़ी कंपनियों को बेचा भी.

मनमोहन सिंह ने अपने 10 साल के कार्यकाल में 23 सरकारी कंपनी बनाई. और 3 को बेचा.

भारत के इतिहास में नरेंद्र मोदी ही एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने एक भी सरकारी कंपनी नही बनाई. बल्कि 23 सरकारी कंपनियों को बेच दिया.

मेरा काम आप लोगों को जानकारी से अवगत कराना है. बाकी आप समझदार हैं. जो मीडिया नही बताता वो मैंने बता दिया.

अब आगे क्या फैसला लेना है, निर्णय आपके हाथ में है.

Tuesday, April 30, 2024

Prajwal Revanna H.D. Deve Gowda के रिसते में कौन लगता है औऱ अभी चर्चा में क्यूं है??



एच डी देवी गौड़ा ही वो शख्स हैं जिन्होंने अपने राज्य के आईपीएस अधिकारी जोगिंदर सिंह को दिल्ली बुलाकर CBI प्रमुख इसलिए बनाया था, ताकि लालू प्रसाद यादव जी को चारा घोटाले में फंसाया जा सके.

लालू प्रसाद यादव जी पर शिकंजे की बुनियाद 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवी गौड़ा ने रखी थी. 

एक पिछड़े वर्ग का प्रधानमंत्री अपने ही पार्टी के पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री को झूठे मुकदमे में फंसाता है.

आज देवी गौड़ा का पोता सेक्स स्कैंडल में फंस चुका है.

सेक्स स्कैंडल भी कहना गलत है, पहली नजर में यह बलात्कार स्कैंडल लग रहा है.

मित्रों आप लोगों को क्या लगता है. देवी गौड़ा के पोते पर कार्यवाही होनी चाहिए या नही ?


2500 वीडियो क्लिप और महिलाओं का यौन शोषण...सेक्स स्कैंडल में फंसे रेवन्ना को कितनी हो सकती है सजा?

रेवन्ना को कितनी सजा हो सकती है? 

प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ जो FIR दर्ज की गई है उसमें आईपीसी की धारा 354ए, 354डी, 506, 509 लगाई गई है. अब हम आपको बताते हैं कि आईपीसी की इन धाराओं में अगर रेवन्ना दोषी दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें अधिकतम कितनी और किस प्रकार की सजा हो सकती है. आईपीपीसी की धारा 354ए के तहत यौन उत्पीड़न का आरोप लगता है जिसमें दोषी पाए गए शख्स को अधिकतम 3 साल जेल की सजा और उस पर जुर्माना लग सकता है. वहीं रेवन्ना के खिलाफ धारा 354डी भी लगाई गई है जिसका मतलब गलत नियत से किसी महिला का पीछा करना होता है. इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम 5 साल जेल की सजा और जुर्माना लग सकता है. वहीं रेवन्ना पर आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी देना) के तहत उन्हें अधिकतम 7 साल जेल और जुर्माने की सजा मिल सकती है जबकि धारा 509 के तहत किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोप में उन्हें अधिकतम तीन साल जेल की सजा और जुर्माना लग सकता है.


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