महीन जाल बुनकर, झूठ-सच की ब्रांडिंग करके नरेटिव कैसे खड़ा किया जाता है, विडीयो उसका शानदार उदाहरण है।
●●
पहले वक्ता अपनी स्टैंडिंग बताता है
वह राहुल गांधी के साथ "चाय पीता" है, और उन्हें राहुल को लेक्चर करने के लिए अक्सर बुलाया जाता है।
यानी वह छोटा मोटा आदमी नही। तटस्थ, स्ट्रेट फार्वर्ड भी है। निजत्व का सम्मान भी करता है, अहा.. !!!
फिर एक स्टेटमेंट- "राहुल विकास विरोधी है, "शायद" मार्क्सवाद का कीड़ा उनके दिमाग मे बैठा है" इस बीच कुछ शब्द जैसे सेंट स्टीफेंस, जेएनयू, वामपंथ टपका दिये।
●●
अब आगे वे अपने स्टेटमेंट को साबित करेंगे।
तमिलनाडु शिक्षा पर खर्च करता है, मिड डे मील ख़र्च करता है। वह अमीर राज्य है, तो कर लेगा। गरीब राज्य कैसे करें। राहुल वामपन्थी है, शिक्षा सब्सिडाइज करना चाहते हैं।
प्रोफेसर साहब।
विद्या ददाति विनयम, विन्यादयाति पात्रत्वाम
पत्रत्वात धनमाप्नोति, धनाद धर्म, तत: सुखम
याने पेट काटकर शिक्षा पर खर्च करो। यह हमारे भारत के नीति शास्त्र कह रहे हैं, यूरोप के कार्ल मार्क्स नही।
तमिलनाडु में मिडडे मील, अखण्ड गरीबी के दौर 1951 में पेट काटकर, कामराज ने शुरू किया था। शिक्षा बढ़ी, तो तमिल लोग प्रोफेशनल बने, आये, उद्यमी बने। वहां ऑटो हब बना, इंडस्ट्री हब बना।
तो जाकर समृद्धि आयी। राहुल ठीक सोच रहे हैं। पर आप जैसे धूर्त चतुराई से, राहुल पर वामपन्थ का "अपराध" चिपका देते हैं।
●●
आपका मानना है, कि कि रोड रस्ते बनेंगे, तो समृद्धि आएगी, तब शिक्षा पर खर्च हो। लेकिन राहुल रोड बनने नही देते। वे भट्टा परसौल गए।
प्रोफेसर साहब। वो नियमगिरि भी गए। बयान दिए,मायावती नही, या नवीन के खिलाफ नही, अपनी ही सरकार के खिलाफ।
सड़क बनाने के खिलाफ नही, जमीन के जबरिया- कौड़ी के मोल, अधिग्रहण के खिलाफ। तब, चौगुने मुआवजे का कानून आया।
आप सरकार हो, माई बाप नही की जब मर्जी आये गरीब किसानों की जमीन किसी प्रोजेक्ट के नाम से कब्जिया लो, मुंह पर चवन्नी फेंक दो।
लो, मगर विनम्रता से मांगकर,
और दो चौगुनी कीमत।
फिर बनाओ बिंदास रोड, हाइवे, एयरपोर्ट।
हिंदुस्तान की धरती, किसी के बाप की नही। सरकार की बपौती हरगिज नही। राहुल ने हिम्मत की अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ बोलने की, उस हिम्मत को सलाम।
लेकिन धूर्त मण्डल ने बात महीनता से पलटकर, मायावती की महानता चिपकाने का मौका लपक लिया।
●●
पर असल मे लाइन बीजेपी की पीट रहे हैं। प्रोफेसर कहते है- देश मे पैसा न होगा, तो "ट्रिकल डाउन" कैसे करोगे??
ओह हो।
ये ट्रिकल डाउन कैसे होता है जनाब?? दो फेवरिट उयोगपतियो की जेब भरने से?? जमीन, सब्सिडी, कर्ज माफी, टेक्स छूट देने से??
क्या प्रोडक्ट बनाएंगे वो, खरीदेगा कौन-
जब जनता के पास पैसा नही??
मनरेगा, या न्याय योजना। हां माना मुफ्त के पैसे है। लेकिन इससे जनता के पास लिक्विडिटी होगी, वह रिटेलर के पास कस्बों में आएगी, वहां से शहरों के थोक व्यापारी तक, वहां से मेट्रो के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में।
यह पैसे का बॉटम अप प्रवाह है, जो समूचे बाजार औऱ अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर लाता है। इसमे पैसा देश मे, जनता के बीच बहता है।
ट्रिकल डाउन, आप लुटेरों की बनाई फर्जी थ्योरी है। मुनाफे को ऑटोमेशन मे खर्च करते है, रोजगार नही देते। माल महंगा बेचकर धन विदेशों में छुपाते है।
हमारा ही पैसा "विदेशी FDI" बनाकर, वापस यहां लाते हैं। याने पैसा इस अर्थव्यवस्था से बाहर निकल जाता है। यही 10 साल से हो रहा है। नहीं चाहिए।
अपनी थ्योरी अपने पास रखिए।
●●
अंत मे पर्सनल अटैक।
कहते है- राहुल ने शेयर खरीदे है, लेकिन उद्योपतियों का विरोध करते हैं। राहुल ने स्टेट बैंक और एलआईसी के शेयर खरीदे हैं??
या अम्बानी अडानी के??
प्रोफेसर, बताना भूल गए।
पर शेयर शब्द से उन्होंने आपको बता दिया कि राहुल ढोंगी हैं। वे वेल्थ क्रिएशन को डिस्टर्ब करते हैं।
नहीं!!!
वे क्रोनी कैपिटलिज्म को डिस्टर्ब करते हैं प्रोफेसर साहिब। उन्ही को, जिनसे आपकी बकैती की दुकान,
आपका घर चलता है।
●●
हिंदनबर्ग का जिक्र किया। वह शार्ट सेलर हो, या ब्लेकमेलर, उसमे आंकड़े खुद, अडानी इंडस्ट्रीज के द्वारा दी गयी एनुअल रिपोर्ट्स से उठाये गए थे।
अडानी उल्लेखित गड़बड़ियों को न असत्य साबित न कर सके, न कोई एक्सप्लेनेशन दिया। कायदे से अमेरिका होता, तो वे आपराधिक प्रकरण में अभियोजित होते।
●●
अंत मे नेहरू।
इंदिरा को नेहरू न सांसद बनाया, न मंत्री। वह फर्स्ट लेडी की भूमिका निभाती थी, उसके कारण दूसरे हैं। मण्डल झूठ बोल रहे हैं।
●●
राहुल की ट्रेनिंग सड़को पर हो चुकी है। और उन्हें सड़को पर ही रहना चाहिए।
बहुत मनमोहन और रघुराम मिलेंगे।
दूसरा राहुल नही मिलेगा।
@Profdilipmandal जान लें।
प्रिय मनीष, आपका आलेख पढ़ा. फैक्ट की कुछ अशुद्धियां हैं. आपका सार्वजनिक अपमान नहीं करना चाहता. इसलिए पूरी लिस्ट लिख नहीं लगा रहा हूं. सिर्फ एक बात बताता हूं. राहुल गांधी ने सरकारी कंपनियों नहीं, पूंजीपतियों की कंपनी में इन्वेस्टमेंट किया है. और इसमें कुछ भी गलत नहीं है. (देखें राहुल गांधी का चुनावी एफिडेविट)
एक बात आपने राहुल के बारे में सही लिखी है. मैं आपको जस का तस कोट कर रहा हूं.
"उन्हें सड़को पर ही रहना चाहिए।
बहुत मनमोहन और रघुराम मिलेंगे।
दूसरा राहुल नही मिलेगा।"
आपकी यही बात राहुल की सबसे बड़ी समस्या है. वे जिम्मेदारी से भागते हैं. सरकार चलाते हैं, पर पद नहीं लेते. ऐसे लोग देश का तो छोडिए, पार्टी का भी भला नहीं कर पाएंगे.
प्रिय मण्डल साहब
आपका उत्तर मिला। हम कभी आपको और कभी इसके अधूरेपन को देखते है।
●●
आपको मतिभ्रम है कि चार चंडाल ही देश का शेयर मार्किट और कैपिटलिज्म है। प्लीज करेक्ट योरसेल्फ, क्योकि व्यापार जगत में इन क्रोनीज के आगे जहान और भी हैं।
राहुल, सरकारों के अवैध समर्थन के बगैर, स्वयं आगे बढ़ने वाले उद्योगों को सपोर्ट करते हैं। उनमे इन्वेस्ट भी करते है- इसे साबित करने का आभार।
●●
राजनीति की सीमित व्याख्या है- मंत्री बनना, गर्वमेंट चलाना..
"सो कॉल्ड जिम्मेदारी लेना"
वह गांधी ने नही ली, मार्टिन लूथर ने नही ली, विनोबा भावे, जयप्रकाश ने नही ली। लेकिन क्या वे गैर जिम्मेदार थे? कमजोर थे?
डरपोक और भगोड़े थे???
मान्यवर कांशीराम कभी सीएम नही बने। क्यो, भगोड़े थे, या अयोग्य थे??
पप्पू थे न कांशीराम??
●●
राजनीति के आयाम मंत्री पद से ऊंचे हो सकते हैं, मण्डल साहब। बड़ी जिम्मेदारी है जनता को सुनने की।
भट्टा परसौल और नियमगिरी में जाने की। ट्रक ड्राइवरों और बढ़ईयो के सुख दुख जानने और उनके लिए पॉलिसी बनवाने की।
राहुल पार्टी का भला न कर पाए, देश और इसकी जनता का भला कर ले, हम संतुष्ट है।
●●
अंततः..
अंग्रेजो के पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे बाबा साहब ने अपने जीवन का सबसे बड़ा सन्देश, शिक्षा लेने का दिया था।
रोड बनवाने का नही।
तो क्या बाबा साहब, विकास विरोधी थे??
जवाब दें।
●●
सार्वजनिक अपमान, बेझिझक कर सकते हैं। मै आपको अग्रिम क्षमा प्रदान करता हूँ।