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Wednesday, July 17, 2024

राहुल के बुरे दिन कैसे शुरू हुए??

राहुल के बुरे दिन कैसे शुरू हुए?? 

शुरू हुए भट्टा परसौल से। किसानों की जमीन सरकारी प्रोजेक्ट के लिए लेने, और उचित मुआवजा न मिलने की समस्या को लेकर वे किसानों से मिलने जाना चाहते थे। 

यूपी सरकार ने रोका, तो वे नाटकीय तऱीके से मोटरसायकिल में बैठकर चले गए। यह पहली गलती थी। 
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दूसरी गलती थी, उड़ीसा में नियमगिरी का दौरा। यहां उन्होंने अपना फेमस जुमला बोला- आई एम योर सोल्जर एट डेल्ही.. 

राहुल, गरीबो का सिपाही बनने की कोशिश कर रहे थे। यह अच्छी बात तो नही थी। 

गरीबो का सिपाही बनने के लिए आपको अमीरों के किले पर चढ़ाई करनी पड़ेगी। और अमीर जब आपका मित्र ही हो, तो चढ़ाई क्यो करना?? 

क्योकि नियमगिरी और भट्टा परसौल के बाद भू अधिग्रहण क़ानून आया। किसानों को जमीन के चौगुने मोल मिले,लेकिन अमीरों के प्रोजेक्टों की कॉस्ट तो चौगुनी हो गई। यह कीमत मुनाफे में छेद करती है। नुकसान देती है। 

आखिर यह दुश्मनी क्यो निकाली राहुल ने?? 
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यूपीए-2 सरकार भी अपने पैरों पर जमकर कुल्हाड़ी मार रही थी। और उसमे आगे आगे थे- जयराम रमेश। 

वे पर्यावरण मंत्री थे। 

अब मंत्री को लालबत्ती कार लेनी चाहिए, बंगले में रहना चाहिए। चुपचाप फीते काटने चाहिए और नोट लेकर, नोटशीट पर दस्तखत करने चाहिए। पर मंत्रीजी एआईए- एसआईए स्टडी को पढ़ने लगे

जयराम रमेश ने अपना जॉब सीरियसली ले लिया। पर्यावरणीय मानकों पर सैंकड़ो प्रोजेक्ट रद्द किए, खारिज किया, फच्चर फंसा दिया। धनपशुओं के अरबो अधर में लटक गए।  

अब हाथियों के कॉरिडोर के लिए, माइंस प्रोजेक्ट को रोकने का काम, कोई बुद्धिमान नेता रोकता है क्या?? 

जिस देश मे अक्ल से बड़ी भैंस होती है, वहां हाथी बड़ा या उद्योगपति? आप बताओ। 
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एक के बाद ऐसे कई मामले हुए, और सरकार अमीर विरोधी सरकार बन गयी। 

लेकिन अमीरों के हाथ, सरकार से भी लम्बे होते है। और चैनल उनमे से एक होता है। 

देश के 30 में से 18 चैनल उसी के थे, जिसके लड़के के ब्याह में रिहन्ना नाचती है। लिहाजा सारे चैनल सुर बदलने लगे। 

जो घोटाले, पांच सात साल बाद, कोर्ट खारिज करने वाला था, उनका तुरत फुरत मीडिया ट्रायल चला। चैनल के पर्दे पर आपकी अदालत लगी। एंकरों ने मनमोहन सरकार को, टीवी पर दोषी करार दे दिया। 
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एक कंगारु कोर्ट रामलीला मैदान में भी लगाई गई। टीवी ने उसे 60-60 घण्टे का अनब्रोकन कवरेज दिया। इन कोशिशों से एकाएक, हवा बदलने लगी। 

दरअसल तूफान पैदा हो गया। 

जो बड़े बड़े पंखे लगाकर पैदा किया गया था। इन पंखों का कनेक्शन उन्ही घरानों से जुड़ा था, जिनके ब्याह में जस्टिन बीबर नाचता है। 
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सरकार बदली, और फिर उसी मीडिया ने पप्पूकरण शुरू किया। टीवी और सोशल मीडिया पर 5 साल, एकतरफा नरेटिव चला। 

पप्पू, पप्पू, पप्पू...

राहुल फिर भी लड़े। भीतर लड़े, बाहर लड़े, लेकिन अकेले। न कांग्रेस साथ थी, न जनता, न मीडिया, न सिस्टम। उस पर बीच चुनाव बालाकोट का ड्रामा। 

यूँ समझिये, 2019 में अभिमन्यु को घेरकर मारा गया। जो सरकार बदलनी चाहिए थी, मजबूत होकर लौटी। 

राहुल भी महज 8 सीटें बढ़ा सके। 
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इस्तीफे, और साल दो साल की उहापोह के बाद राहुल ने फिर सर उठाया। वह किया, जो पहले नही किया था। 

जनता से जुड़े। जो शब्दो से कह पाने में सफल न हुए, देहभाषा बोल गई। अब उसकी आंखें बोलती है, बदन बोलता है, देश सुनता है। 

समझता भी है। 
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पप्पू करण का वह दौर गुजर चुका है। राहुल मिट्टी पकड़ पहलवान की तरह अखाड़े में डटे हैं। पहले से कहीं ज्यादा मुखर, चमकदार, ताकतवर, निर्भय नजर आते हैं। 

लेकिन अंदाज वही अक्खड़ है। वे खेत मे दिख जाएंगे, नाई की दुकान में, किसी बढई या मिस्त्री की वर्कशाप में दिख जाएंगे, सड़को पर चलते दिख जाएंगे...

लेकिन आज भी यह बन्दा, उस ब्याह में नही दिखता जहां देश का सारा पोलिटीकल क्लास नाचता है। 
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यह तब जब सबसे बड़ा उद्योगपति, खुद न्योता लेकर दस जनपथ पहुँचा। राहुल नही मिले, वे भगदड़ में मरे लोगो को सांत्वना देने चले गए। मणिपुर चले गए। गुजरात चले गए। 

एंटीलिया में हाजिरी नही दी, 
सर न झुकाया। 

इस जिद्दी लड़के के इसी अंदाज का कायल हूँ। अब भले ही इसी अंदाज ने जिसने पंद्रह साल पहले, कांग्रेस का, राहुल का, देश का सितारा डुबोया था। 
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पर अच्छा लगता है, कि तमाम झँजवात में गिरने, बिखरने, टूटने के बावजूद भी कोई है जो डरा नही है, डिगा नही, बदला नही है। 

वो आज भी अड़ा है.. 
वहीं खड़ा है। 

भट्टा परसौल के किसानों से घिरा, नियमगिरी के आदिवासियों के बीच उस मंच पर, जहां से आती हुई आवाज, वैसी की वैसी रवानियत के साथ, कानो में गूंज रही है.. 

आई एम योर सोल्जर एट डेल्ही.. 
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और मैं कहता हूँ...बी देयर माई बॉय, 

योर एरा हैज कम...


लेखक कर्ता है आपका

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