अयोध्या में राम मंदिर, बाबरी मस्जिद की जगह बनाया गया है. बाबरी मस्जिद को मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बनवाया था. बाबरी मस्जिद को तुग़लकी वास्तुकला में बनाया गया था.
बाबरी मस्जिद से जुड़ी कुछ और बातेंः
बाबरी मस्जिद को 1528-29 में बनवाया गया था।
1940 के दशक से पहले, आधिकारिक दस्तावेज़ों में इसे मस्जिद-ए जन्मस्थान ("जन्मस्थान की मस्जिद") कहा जाता था।
6 दिसंबर, 1992 को विश्व हिंदू परिषद जैसे दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े हिंदू कार्यकर्ताओं के एक बड़े समूह ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था।
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे।
राम मंदिर से जुड़ी कुछ और बातेंः
राम मंदिर का निर्माण कार्य अगस्त 2020 में शुरू हुआ था।
22 जनवरी, 2024 को अर्धनिर्मित मंदिर के गर्भगृह में हिंदू देवता राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई।
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दिसम्बर की वो सर्द शाम थी।
गुरुवार 22 दिसम्बर की रात, कुछ लोग एक मस्जिद में घुसे, मूर्तियां रख दी। अगली सुबह शोर किया कि अमुक मस्जिद में प्रभु की मूर्तियां प्रकट हुई हैं, लोग दर्शन के लिए आए।
भीड़ उमड़ने लगी।
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बंटवारे के बाद देश, हिन्दू मुस्लिम दंगो में उलझा था। पुलिस ने परिसर बंद कर दिया। पूजा-नमाज दोनों बन्द हुई।
कब्जे के विरुद्ध मस्जिद के ऑर्गनाजर कोर्ट गए। मामला मूलतः प्रोपर्टी डिस्प्यूट का था। यानि जो जमीन, खसरा खतौनी कागज पर कुछ सौ साल से मस्जिद रही है, वहां अवैध कब्जा हो गया है।
कोर्ट का फैसला 2019 में आया। जो खसरा खतौनी पर नही, जज साहब की आस्था पर आधारित था।
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मामला 80 के दशक में अचानक राजनीतिक मुद्दा हो गया। आंदोलन, दंगे, अराजकता.. जो आज तक प्रवृत्त है।
सिर्फ एक प्रोपर्टी का इतना असर!!
देश भर में हजारों प्रॉपर्टीज है, जो अराजकता, दंगे, मौतों का बायस बनाई जा सकती हैं। तो 1991 में नरसिंहराव सरकार प्लेसेज ऑफ वर्षिप एक्ट लाई।
यानि जो धर्मस्थल 15 अगस्त 1947 में जिसका था, उसी में फ्रीज रहेगा।
आप मन्दिर को मस्जिद, मस्जिद को गुरुद्वारा, गुरद्वारे को चर्च न बना सकते।
अपने धर्म के भवन में नही बदल सकते।
ये अच्छा, समझदारी भरा कदम था। हालांकि इसके दायरे में अयोध्या की प्रॉपर्टी नहीं रखी गयी। क्योंकि वह 1991 के इस कानून के पहले से सब्ज्युडिस था।
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ये बात तो हुई धार्मिक स्थलों की।
सामाजिक स्थलों को भी इसी तरह से निशाना बनाया जा सकता था। जैसे दरगाह, मकतब, मदरसा, मकबरे या मध्यकालीन शासकों की प्रॉपर्टीज..
सरकार ने विस्तृत सर्वे करवाया, वेरिफाइड लिस्ट बनाई। सबका तमाम मालिकाना हक अपने पास लिया।
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फिर एक बोर्ड बनाया। उसके पदाधिकारी सरकार चुनती है। बोर्ड को तमाम प्रॉपर्टीज का संधारण, अनुरक्षण, प्रबंधन करने का काम मिला।
सरकार ने एक CEO दिया (जो कोई IAS या सीनियर PCS होता है)।
नगरपालिका जैसा - जिसमे एक CMO होता है, और तमाम पार्षद होते हैं।
नगरपालिका CMO चलाता है, पार्षद नीति निर्धारित करते हैं। वैसे ही सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड मेम्बर, पेंट, पुताई, खर्चे, किराया वगैरह के फैसले करते हैं। इम्पलीमेंट CEO करता है।
यही वक्फ बोर्ड है। सेंट्रल गवरमेंट का अलग है, राज्यो के अपने अपने बोर्ड हैं।
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तो वक्फ बोर्डो को स्थानीय पटवारी, SDM तहसीलदार, कलेक्टर से वेरिफाइड, चेक्ड औऱ सीमांकित भूमि, और प्रोपर्टी की लिस्ट दे दी गयी है।
पर सर्वे में कुछ गलती हो सकती है।
तो बोर्ड से एक जज को सम्बद्ध किया। यह जज अमूमन हाईकोर्ट से रिटायर्ड बन्दा होता है, कॉंट्रेक्ट पर नियुक्त होता है।
इसका काम है- किसी प्रोपर्टी पर कोई डिस्प्यूट आया, तो उसे रीजॉल्व करेगा।
समझिए कि अगर कोई भी डिस्प्यूट करेगा, तो वह स्थानीय स्थानीय पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर से वेरिफाइड, चेक्ड औऱ सीमांकित भूमि के ऊपर डिस्प्यूट् कर रहा है।
तो जज साहब पुनः चेक औऱ वेरिफाई कराएंगे। फैसला देंगे।
इस फैसले पर अपील नहीं होगी।
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लेकिन रिवीजन पिटीशन डाली जा सकती है।
दरअसल अपील, निचली कोर्ट के फैसले के खिलाफ, ऊपरी कोर्ट में लगती है।
बराबर की कोर्ट में आप रिवीजन पिटीशन डालते हैं। शब्द अलग है, पर बात एक ही है।
वक्फ कोर्ट में फैसला, एक सीनियर हाईकोर्ट जज ने दिया है, तो उसकी अपील नहीं, रिवीजन पिटीशन होगी।
वहां हारे, सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते है।
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उपरोक्त बाते लीगल, एडमिनिस्ट्रेटिव फ्रेमवर्क पर डिस्कशन है। इसे शान्ति से सुनकर, पढ़कर, बड़ी आसानी से समझा जा सकता है।
इसके सेटअप, गुणदोष पर कोई बहस भी हो सकती है। लेकिन नफरती राजनीति गुस्से के माइंडसेट के बगैर हो नहीं सकती।
इसलिए आप देखेंगे कि ज्यादातर दंगाई मानसिकता के लोगो से विमर्श सम्भव नहीं। वे तीसरे वाक्य में राम, मुसलमान, औरँगजेब, जिहाद, तन से जुदा, 72 हूर, पाकिस्तान से लेकर बकरी तक, सब कुछ ले आएंगे।
उनकी पॉलिटिक्स शांति में नहीं,विवाद में है।
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सरकार की भी,
और ज्यूडिशियली की भी..
प्लेसेज ऑफ वर्षिप एक्ट को अवैध घोषित करने की एक पिटीशन, सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में स्वीकार कर ली। फैसला उचित समय पर आयेगा।
सरकार वक्फ स्ट्रक्चर बदलने में लगी हैं। भारतीय इतिहास के सबसे बेशर्म न्यायाधीश, कानून की किताब कूड़े में फेंक,अपनी आस्था पर किये फैसले पर इंटरव्यू दे रहे हैं।
बाबा, धर्म संसद बनाकर फतवे दे रहे हैं।
तो आगे भी कानून की जगह आस्था ही प्रोपर्टी मामलों का बेस बनेगी।
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यह आस्था व्हाट्सप पर फैलाई जाएगी। लोग आस्था पर मरेंगे। कुम्भ हो, रेलवे स्टेशनया आपके पड़ोस में किसी टुच्ची वक्फ प्रोपर्टी के नाम पर भड़का कोई दंगा।
आपके बच्चों की लाश पर चढ़कर, एक भीड़ जश्न मनाएगी।
~ ✍️ Manish Singh
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Q. संविधान में कहीं वक्फ का जिक्र नहीं है।यदि यह आवश्यक होता तो बाबासाहेब अम्बेडकर जी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल जी इसका संविधान में उल्लेख करते।भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए वक्फ अधिनियम,आई एम डी टी एक्ट, पूजास्थल अधिनियम,रोशनी एक्ट लाया गया।जोकि बहुत शर्मनाक है।
Ans.
सविंधान में टेलीग्राफ, इंटरनेट, रामायण, महाभारत, ट्विटर, का भी उल्लेख नहीं। उसमे IPC, CRPC और भारतीय जनता पार्टी का भी उल्लेख नही।
वह एक व्यवस्था संचालन का दिग्दर्शक डाकुमेंट है। लेकिन कमअक्ल आदमी इस तरह की बाते करता है।
Q. Why not start that from 1853?
Ans.
क्योंकि तुम जिस देश और व्यवस्था मे रहते हो, वह 1947 में बना। 1853 का हिसाब रानी विक्टोरिया से लो।
Note: इसको लिखने का उद्देश किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है। जो सच है उसे पढ़ सकें। इसको लिखने में AI, Manish ji, औऱ कुछ कमेंट्स का मदद लिया गया है।
आपके मन में कोई सवाल हो तो comments कर सकते हैं।