5."मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ"
हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ,
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ.
माटी से जुड़ा हुँ मैं, ख्वाब अर्श का लिए हुए,,
पीछे कब मुड़ा हुँ मैं ? राह, मंजिल-ए-तलब लिए,,-(1)
ठोकरों से मैं जूझकर, कभी लड़ा मैं जान-बूझकर,,
मैं झुक गया वहाँ कहीं, जहाँ हार में जीत सी दिखी. -(2)
है वो मंजिल प्रकाश का, जो दिखा वो अर्श में,,
ज्ञान का है वो सागर, जो लहरा रहा तरंगें पवन में,,-(3)
सम्मान मैं लिए हुए, तिरस्कार भी, मैं सह गया,,
ख़्वाब बड़े नए लिए हुए, कुछ हार मैं भी सह गया,,-(4)
हवा के जरिए मैं बहता जाऊँ,
सोचा 'ज्ञान के सागर' में डूबकियाँ लगा जाऊँ,,-(5)
हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ,
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ. - (6)
अपने दिल के जज्बातों को छुपा रहा हूँ,
क्या मैं यही जिंदगी चाहता था,
जिसे जीता चला जा रहा हूँ.
हाँ, मैं आज भी मुस्करा रहा हूँ. -(7)
ऐ हवा, तुम हो इस मेहफिल में आज भी,
चाहे हमारी लफ्जों को, आवाज़ मिले ना मिले,
पत्तों की सर्सराहट हो न हो, में तो मुस्कुरा रहा हूँ.-(8)
तुम्हारी सर्सराहट से तो दुनिया काँप जाती है,
बढ़े-बढ़े इमारतें भी ढह जाती है,
मैं तो मामुली सा, छोटा सा पौधा हूँ,
जिधर चाहो लचा दोll-(9)
हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ,
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ,
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ll-(10)
6.विलाप |
7.शब्द??? |
8.है क्या कसूर इतना बता |
4.ऐ हवा |
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