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16. "आँसुओं की भाषा"


"आँसुओं की भाषा"


रंग-बिरंगी दुनिया में ना जाने कितने आँसुओं के मेले हैं
एक मैं भी तन्हा थे सौ में भी अकेले हैं
आँसुओं की भाषा जिसकी हो अलग ही परिभाषा
रिश्ता - नाता काल से है भाता
कभी खुशी के मोती उग आते
तो कभी क्लेश के मोती चम-चमचमाते
हो सकता है ये मानव के
हो सकता है ये अन्य किसी जीव के
आँसू तो आँसू होता है
जिसे सभी नहीं पढ़ पाता है
कभी कभार तो बारीश की बुन्दें बरस जाती है
कभी तो सिर्फ़ अपने रंग दिखा कर रह जाती है
कभी खुद को पलकों में छुपाती है
कभी मुस्कान में खुद छिप जाती है
जितना ये बाहर निकलता है उतना ही मन हल्का हो जाता है
सच कहूँ ये मन का भारीपन है आँसू
जैसे कूकर की सिटी निकल आई हो
लोगों का जान बचाने आई हो ये आँसू

              -सत्यम् कुमार सिंह




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