यज़ीदी धर्म एक प्राचीन और गूढ़ धार्मिक सम्प्रदाय है, जिसके अनुयायी मुख्य रूप से इराक, सीरिया, तुर्की और जॉर्जिया जैसे देशों में रहते हैं। इस धर्म की मान्यताएँ और रीति-रिवाज अद्वितीय हैं, और इसे अक्सर एकेश्वरवादी धर्म के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यहाँ यज़ीदी धर्म के प्रमुख पहलुओं का विस्तृत विवरण दिया गया है:
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1. उत्पत्ति और इतिहास
* यज़ीदी धर्म की जड़ें प्राचीन मेसोपोटामिया की धार्मिक परंपराओं में हैं, जिसमें ज़रथुस्त्रवाद, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, और इस्लाम के तत्व शामिल हैं। यह माना जाता है कि इसकी स्थापना 12वीं शताब्दी में शेख अदी इब्न मुसाफ़िर ने की थी, जिन्हें यज़ीदी समुदाय में एक पवित्र व्यक्ति माना जाता है।
* यज़ीदी खुद को "एज़िदी" कहते हैं, जिसका अर्थ है "ईश्वर के उपासक"।
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2. मूल सिद्धांत और विश्वास
* एकेश्वरवाद: यज़ीदी ईश्वर को "यज़दान" कहते हैं, जो सर्वशक्तिमान और निराकार है।
* सात फरिश्ते: यज़ीदी मान्यता के अनुसार, ईश्वर ने सात फरिश्तों की रचना की, जिनमें सबसे प्रमुख ताऊस मेलेक (मोर फरिश्ता) हैं। ताऊस मेलेक को अक्सर गलत समझा जाता है, क्योंकि कुछ इस्लामिक परंपराओं में उन्हें "शैतान" के रूप में देखा जाता है। हालाँकि, यज़ीदी उन्हें ईश्वर का प्रतिनिधि और दुनिया का संरक्षक मानते हैं।
* पुनर्जन्म में विश्वास: यज़ीदी मानते हैं कि आत्मा पुनर्जन्म लेती है, लेकिन यह अवधारणा हिंदू या बौद्ध धर्म से भिन्न है।
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3. धर्मांतरण और मंदिरों तक पहुँच
* धर्मांतरण निषेध: यज़ीदी धर्म जन्माधारित है, अर्थात केवल यज़ीदी माता-पिता से जन्मे व्यक्ति ही इस धर्म को मान सकते हैं। धर्मांतरण की अनुमति नहीं है।
* मंदिरों में प्रवेश प्रतिबंध: यज़ीदी मंदिरों (जिन्हें "कुब्बा" या "मज़ार" कहा जाता है) में गैर-यज़ीदियों का प्रवेश वर्जित है। इसका कारण धार्मिक शुद्धता और परंपराओं की रक्षा करना है। उनका सबसे पवित्र तीर्थस्थल लालिश (इराक में स्थित) है, जहाँ गैर-यज़ीदियों को प्रवेश नहीं दिया जाता।
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4. धार्मिक ग्रंथ और रीति-रिवाज
* पवित्र ग्रंथ: यज़ीदियों के दो मुख्य ग्रंथ हैं—"कितेबा जिलवे" (किताबे रोशनी) और "मशाफ़ा रश" (काली किताब)। इनमें धार्मिक कथाएँ और नैतिक निर्देश हैं।
* प्रमुख उत्सव:
*सरसल: नव वर्ष का त्योहार, जो अप्रैल में मनाया जाता है।
*जेमायी: ताऊस मेलेक की पूजा का उत्सव।
*च्रॉक च्रॉक: तीर्थयात्रा का समय, जब यज़ीदी लालिश जाते हैं।
*बपतिस्मा: यज़ीदी बच्चों का जन्म के बाद बपतिस्मा किया जाता है।
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5. सामाजिक संरचना
* जाति प्रणाली: यज़ीदी समाज तीन जातियों में विभाजित है— शेख, पीर, और मुरीद। इन जातियों के बीच विवाह की अनुमति नहीं है।
*धार्मिक नेतृत्व: सर्वोच्च धार्मिक नेता **"मीर"** कहलाता है, जबकि **"बाबा शेख"** और **"फकीर"** अनुष्ठानों का नेतृत्व करते हैं।
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6. अत्याचार और चुनौतियाँ
*यज़ीदी समुदाय को ऐतिहासिक रूप से इस्लामिक समूहों, विशेषकर आईएसआईएस द्वारा क्रूर अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। 2014 में सिन्जार क्षेत्र में हजारों यज़ीदियों का नरसंहार और महिलाओं का अपहरण इसका उदाहरण है।
* उनकी बंद धार्मिक प्रथाओं और ताऊस मेलेक की पूजा के कारण उन्हें "शैतानपूजक" कहकर भ्रामक रूप से प्रस्तुत किया जाता रहा है।
यज़ीदी समुदाय को ऐतिहासिक और वर्तमान समय में "अत्याचार और चुनौतियों" का सामना करना पड़ा है, जो उनकी धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक पहचान से जुड़े हैं:-
(i) ऐतिहासिक अत्याचार
* इस्लामिक शासनों के दौरान: यज़ीदियों को मध्यकाल से ही इस्लामिक साम्राज्यों (जैसे ऑटोमन साम्राज्य) द्वारा "काफिर" या "शैतानपूजक" कहकर प्रताड़ित किया गया। उनकी धार्मिक प्रथाओं को इस्लाम के विरुद्ध माना गया।
* 19वीं-20वीं सदी: ऑटोमन शासन के दौरान यज़ीदियों को जबरन इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया गया। 1890 के दशक में अर्मेनियाई नरसंहार के दौरान भी उन्हें निशाना बनाया गया।
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(ii) 2014 का आईएसआईएस (ISIS) नरसंहार
* सिन्जार पर हमला: अगस्त 2014 में ISIS ने इराक के सिन्जार क्षेत्र (यज़ीदियों का मुख्य निवास स्थान) पर कब्जा कर लिया। इस दौरान:
* सामूहिक हत्या: हज़ारों यज़ीदी पुरुषों और बूढ़ों को मार डाला गया।
* महिलाओं का अपहरण: 6,000 से अधिक यज़ीदी महिलाओं और बच्चों को गुलाम बनाकर बेच दिया गया। इन्हें यौन हिंसा और जबरन धर्मांतरण का शिकार बनाया गया।
* बच्चों का सैन्यकरण: छोटे लड़कों को ISIS के लड़ाकों के रूप में प्रशिक्षित किया गया।
* जनसंख्या विस्थापन: लगभग 4,00,000 यज़ीदी अपने घरों से भागने को मजबूर हुए। आज भी हज़ारों शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
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(iii) "शैतानपूजक" का भ्रामक लेबल
* ताऊस मेलेक का गलत अर्थ: यज़ीदी ताऊस मेलेक (मोर फरिश्ते) की पूजा करते हैं, जिसे कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों ने "शैतान" के रूप में गलत व्याख्या की। इसका कारण इस्लामी मान्यताओं में शैतान (इब्लीस) की कहानी से मिलता-जुलता प्रतीकवाद है।
* प्रभाव: इस भ्रांति के कारण यज़ीदियों को सदियों से धार्मिक उत्पीड़न, हिंसा और सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ा। ISIS ने इसी लेबल का उपयोग करके उनके खिलाफ जिहाद को उचित ठहराया।
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(iv) वर्तमान चुनौतियाँ
* लापता महिलाएँ और बच्चे: हज़ारों यज़ीदी महिलाएँ और बच्चे अभी भी ISIS के पूर्व सदस्यों के कब्जे में हैं या अज्ञात स्थानों पर फंसे हुए हैं।
* सांस्कृतिक विनाश: ISIS ने यज़ीदियों के पवित्र मंदिरों और कब्रिस्तानों को नष्ट कर दिया, जिससे उनकी धार्मिक विरासत को गहरा आघात पहुँचा।
* मानसिक आघात: नरसंहार से बचे लोग गहरे मनोवैज्ञानिक आघात, PTSD, और सामाजिक अलगाव से जूझ रहे हैं।
* राजनीतिक उपेक्षा: इराक और अन्य देशों में यज़ीदियों को अक्सर राजनीतिक प्रतिनिधित्व और कानूनी सुरक्षा का अभाव है।
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(v) अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
* संयुक्त राष्ट्र की पहल: 2016 में UN ने ISIS के अत्याचारों को "नरसंहार" घोषित किया और यज़ीदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाए।
* मानवाधिकार संगठन: एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने यज़ीदियों की स्थिति पर रिपोर्ट प्रकाशित की हैं।
* पुनर्वास प्रयास: जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने हज़ारों यज़ीदी शरणार्थियों को अपनाया है। इराक में लालिश के पवित्र स्थल को फिर से बसाया जा रहा है।
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(vi) यज़ीदी प्रतिरोध और आशा
* सामुदायिक एकता: यज़ीदियों ने अपनी संस्कृति और धर्म को बचाए रखने के लिए अद्भुत लचीलापन दिखाया है। वे अपने त्योहारों और रीति-रिवाजों को गुप्त रूप से भी जारी रखते हैं।
* नई पीढ़ी की आवाज़: युवा यज़ीदी नेता और सक्रियता करने वाले (जैसे नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नादिया मुराद) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रख रहे हैं।
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### निष्कर्ष
यज़ीदियों के खिलाफ हिंसा केवल धार्मिक कट्टरता का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उनकी अल्पसंख्यक पहचान, सांस्कृतिक विशिष्टता, और राजनीतिक कमजोरी का भी प्रतीक है। 2014 की घटना ने दुनिया को यज़ीदियों की पीड़ा से परिचित कराया, लेकिन उनकी लड़ाई अभी भी जारी है—न्याय, पुनर्निर्माण, और मान्यता के लिए।
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7. यज़ीदी धर्म की विशिष्टता के कारण
1. सांस्कृतिक संरक्षण: धर्मांतरण पर प्रतिबंध और मंदिरों में प्रवेश निषेध उनकी
पहचान बचाए रखने की रणनीति है।
2. मौखिक परंपरा: अधिकांश धार्मिक ज्ञान मौखिक रूप से हस्तांतरित होता है,
जिससे बाहरी हस्तक्षेप का डर है।
3. ऐतिहासिक उत्पीड़न: लगातार अत्याचारों के कारण समुदाय ने स्वयं को
बाहरी दुनिया से अलग रखना चुना।
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8. वर्तमान स्थिति
* आज दुनिया भर में लगभग 10-15 लाख यज़ीदी हैं, जिनमें से अधिकांश इराक में रहते हैं। उनकी संस्कृति और धर्म को यूनेस्को द्वारा संरक्षित सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता मिली है।
* अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उनके अधिकारों और सुरक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाई है, लेकिन उनकी धार्मिक स्वायत्तता और अस्तित्व की लड़ाई जारी है।
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[यज़ीदी धर्म अपनी गहन आध्यात्मिकता, प्रतीकवाद और सामाजिक एकता के लिए जाना जाता है। उनकी बंद प्रथाएँ उनके इतिहास, विश्वासों और बाहरी खतरों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को दर्शाती हैं।]
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