Thursday, March 13, 2025

क्या सच में Bombay HC के द्वारा "जातिगत आरक्षण पर बोलना किसी समुदाय के खिलाफ नहीं माना जा सकता है, ऐसे मामले में SC ST के तहत केस भी दर्ज नही हो सकता" दिया फैसला उचित नहीं है?

BIG NEWS 🚨 BOMBAY HIGH COURT का फैसला न्याय संगत नही है.

हाल ही में Bombay High Court से एक फ़ैसला निकाल कर आता है जिसमें HC कहती है:- 

हाई कोर्ट : "जातिगत आरक्षण पर बोलना किसी समुदाय के खिलाफ नहीं माना जा सकता है, ऐसे मामले में SC ST के तहत केस भी दर्ज नही हो सकता।" 

कूछ लोगों का मानना है कि न्यायपालिका के द्वारा लिया गया यह फैसला पूरी तरह जातिवाद को बढ़ावा देगा.

उदाहरण : मुंबई नायर टोपीवाला मेडिकल कॉलेज में ST समाज की पायल ताडवी MD गायनेकोलॉजिस्ट की पढ़ाई कर रही थी. पायल ताडवी को होस्टल में जो कमरा अलॉट किया गया था,

उसमें जनरल कास्ट की तीन अन्य लड़कियां थी जो पायल ताडवी को आरक्षण पर ताना मारती थीं. आरक्षण की गाली देकर पायल ताडवी का मानसिक शोषण करती थी.

2019 में पायल ताडवी ने आत्महत्या कर ली। 

हाई कोर्ट का फैसला आरक्षण के नाम पर OBC SC ST को अपमानित करने वालों का हौसला बढ़ाएगा।

-----------------------------------------

मैं इसे किसी और नजर से देखने का कोशिश किया हूं - 

भारतीय संविधान और कानूनी प्रावधानों के संदर्भ में, जातिगत आरक्षण पर वस्तुनिष्ठ और सम्मानजनक चर्चा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) के तहत संरक्षित माना जाता है। हालाँकि, SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को सामूहिक अपमान, उत्पीड़न या हिंसा से बचाना है। न्यायालयों ने स्पष्ट किया है कि:

1. आरक्षण नीति की आलोचना ≠ जातिगत अपमान:  
   यदि चर्चा आरक्षण की नीतिगत खामियों पर केंद्रित है और किसी समुदाय को निशाना बनाकर अपमानजनक भाषा, रूढ़िवादी टिप्पणियाँ, या हिंसा भड़काने वाले बयान नहीं हैं, तो SC/ST अधिनियम के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2020) में कहा कि "अधिनियम का उद्देश्य जातिगत पूर्वाग्रह से प्रेरित अत्याचारों को रोकना है, न कि नीतिगत बहस को दबाना।"

2. संदर्भ और भाषा की भूमिका:  
   यदि आरक्षण पर बहस में जातिगत स्टीरियोटाइप, घृणास्पद भाषा, या समुदाय विशेष को नीचा दिखाने का इरादा है, तो यह SC/ST अधिनियम के दायरे में आ सकता है। उदाहरणार्थ, "आरक्षण अयोग्यता को बढ़ावा देता है" जैसी टिप्पणी नीतिगत आलोचना है, जबकि "SC/ST समुदाय के लोग अयोग्य हैं" कहना जातिगत अपमान हो सकता है।

3. मनचलों के मनोबल का सवाल:  
   यदि कानूनी प्रक्रिया स्पष्ट रूप से वस्तुनिष्ठ आलोचना और जातिगत उन्माद के बीच अंतर करती है, तो इससे गलत इरादे वाले लोगों को बढ़ावा नहीं मिलेगा। हालाँकि, अगर अदालतें या प्रशासन भाषा के संदर्भ और इरादे को गंभीरता से नहीं लेते, तो दुरुपयोग की संभावना बढ़ सकती है। 

निष्कर्ष:  
* सही फैसला: नीतिगत आलोचना को SC/ST अधिनियम के दायरे से बाहर रखना संवैधानिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुकूल है।  
* सावधानी जरूरी: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि "आलोचना" के बहाने जातिगत घृणा या अश्लील भाषा को बढ़ावा न मिले। इसके लिए न्यायपालिका को प्रत्येक मामले के संदर्भ, भाषा और इरादे का सूक्ष्मता से विश्लेषण करना चाहिए।  
* जागरूकता की आवश्यकता: समाज में यह समझ बढ़ाना आवश्यक है कि नीति की आलोचना और समुदाय विशेष के प्रति घृणा में अंतर है। 

सारांश में, संतुलित कानूनी व्यवस्था ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय दोनों को सुनिश्चित कर सकती है।



आप अपनी राय Comment Section में दे सकते हैं। 

No comments:

Post a Comment