"अल्हड़ दिवाना"
कुछ पाने की उम्मीद में, मैं कल रोज, बहुत खोया, मैं कल रोज़, बहुत रोया, मैं कल रोज, बहुत सोया। शर्म आने लगी, खुद पर, जब मैंने सच को पहचाना। क्या होता है भिकारी होना। क्या हुआ जब, भीख की कटोरी ख़ाली ही जाना। नहीं देते हैं सभी लोग भीख यहाँ, देखकर भी सबकुछ, खुद को अंधा बताते हैं। अमीरी के आड़ में, क्यूँ बन जाते हैं लोग भिखारी यहाँ? ख़ुद को ज्ञानी समझने वाले, क्यूँ अज्ञानी बन जाते हैं? हूँ में शायर पालग सा, मदमस्त गगन में घुमता हूँ, मतवाला हूं, अल्हड़ दिवाना हूँ, मैं ही प्रेम का भिकारी हूँ।
              -✍️ सत्यम् कुमार सिंह 💞
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