Monday, August 12, 2024

पीतल को सोना बताकर बेचने को क्या कहेंगे? फ्राड? बेईमानी, चोरी?

पीतल को सोना बताकर बेचने को क्या कहेंगे? 
फ्राड? बेईमानी, चोरी? 

10 रु की चीज को दस करोड़ का बताकर, बैंक में गिरवी रखके, करोड़ो कर्ज लेने वाले को क्या कहेंगे? 

हिंडनबर्ग यही बता रहा है। 
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जब शेयर मार्केट में किसी शेयर के दाम नकली रूप से बढ़ाये जाते है, तो आम इन्वेस्टर के फायदे के लिए नही बढ़ाये जाते। 

क्योकि कम्पनी के 25 शेयर मार्केट में है, तो 75 मालिक के पास। अगर बाजार में 25 शेयर का मूल्य सौ गुना हो जाये, तो 75 शेयर का मूल्य भी सौ गुना हो जायेगा। 

तो प्राइज बढ़ने से इन्वेस्टर की कम, मालिक की वेल्थ ज्यादा बढ़ती है। 
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यह वेल्थ है- शेयर
और ये शेयर है- महज एक कागज

जो कल बाजार में 10 रु का था, आज 10 करोड़ का दिख रहा है। तो मालिक अपने शेयर गिरवी रखकर, 10 करोड़ के असली नोट उठा सकते हैं। 

तो ये यह हुआ, पीतल को सोना बताकर बेचने का फ्रॉड। 
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और इस फ्रॉड को पकड़ कर, सजा दिलाने की जिम्मेदारी जिस संस्था की थी, उसकी कर्ता धर्ता खुद ही इस फ्रॉड में शामिल है.. 

जो फंड इन शेयरों की कीमत नकली रूप से बढा रहा था, उस फंड में इनका भी पैसा लगा है। 
यह बात हिण्डन बर्ग की नई रिपोर्ट कह रही है। 
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हिंडनबर्ग अपनी रिपोर्ट, पब्लिक डोमेन में मौजूद दस्तावेजों की पड़ताल करके देता है।

याने जो रिपोर्ट कम्पनियां खुद ROC के देते है। वेबसाइट में डालते है, या अन्य फर्मों से आदान प्रदान करते हैं। 

ऐसे में उसके आंकड़े अकाट्य है। कम्पनियों द्वारा स्व-स्वीकार्य हैं। उसकी रिपोर्ट के डिनायल का मतलब यह है कि वो खुद ही अपनी रिपोर्ट डिनाय कर रहे हैं। 
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हिन्डनबर्ग से बचाव के लिए इसके खिलाफ बोली जाने वाली मूर्खतापूर्ण बाते कुछ इस तरह की हैं...

1- यह विदेशी संस्था है। अमेरिकी है, सीआईए है, एलियन है, दुष्ट भारत से जलता है। 

जवाब- उस सब मान लिया। आंकड़े सच है, या झूठ, आप वो बताओ। सच, देशी या विदेशी नही होता। 

और अगर झूठ है, तो कम्पनी खुद झूठ बोल रही है। आखिर उसी के आंकड़े, और जानकारी तो कोट की जा रही है। 

2- हिन्दनबर्ग ऐसी रिपोर्ट के बाद शार्ट सेल करता है, पैसे कमाता है। 

जवाब- स्मगलिंग की सूचना देकर माल पकड़वाने वाले को 10% इनाम मिलता है। अब सूचना देने वाला इनाम के लालच में करता है, या देशप्रेम से ओत प्रोत होकर, यह बात बकवास है।

पुलिस को अब स्मगलर को पकड़ना चाहिए , की सूचना देने वाले को ही लालची होने का इल्जाम लगाकर खारिज कर दोगे?? 

2- ये देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश है। 

जवाब -ये बात 100% सच है। अडानी इज इंडिया, इंडिया इज अडानी। उसके शेयर गिरने से देश एकदम बर्बाद हो जाएगा। 

क्योकि वह जबरन शेयर के दाम बढ़ाकर, बढ़े दाम पर गिरवी रख के, अरबो करोड़ लोन लेता है, इसी से तो हमारी अर्थव्यवस्था चल रही है। 

वर्ना बाकी तो भड्ड है। कर्जा आकाश पर खड़ा है, रुपया पाताल में। बस अडानी ही अर्थव्यवस्था है। देश के बाकी 140 करोड़ नागरिक, लाखो फैक्ट्री, व्यापारी, कर्मचारी और 10 लाख कम्पनियां तो बस घुइयां छील रही हैं। 
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जो लोग बात बात पर कहते है, की फलाना खदान बिक रही है, खरीद लो, वरना न कहना कि अडानी ने खरीद लिया.. 

उनसे अनुरोध है कि पीतल जैसे शेयर को सोना बताकर, गिरवी रखवाकर दो चार लाख करोड़ का असली नोट मुझे भी दिलवा दो। सेबी से संरक्षण भी दिलवा दो। 

फिर रेल, भेल, तेल, जेल सब खरीद लूंगा, और तुमको एक हजार करोड़ कमीशन भी दे दूंगा। 
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दरअसल मोदी और हिंदुत्व की रक्षा करते करते ये बनबूचड़ों की जमात, कब अडानी के पन्ना प्रमुख बन गए, इन्हें पता ही न चला। 

देश के प्रमुख पदों पर चाटुकार, बेईमान, इंकम्पेटेंट और धूर्त लोग बिठाये गए हैं। एक अलग ही धूर्त लोक बना दिया गया है, जो आपस एक दूसरे के काले कारनामो का पालन पोषण करते हैं। 

और भाजपा-आरएसएस, ट्रोल और तमाम इनके टूलकिट, इस धूर्तलोक के सुरक्षाकर्मी बन गए हैं।
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क्या केशव बलिराम हेडगेवार ने सोचा होगा, कि वो सारा मन्त्र, यंत्र और तंत्र जो बना रहे हैं, वह सौ साल बाद बस, एक आदमी की गुलामी कर जेब भरने का सिस्टम बन जायेगा। 

और वो सावरकर, जो 60 रुपये के लिए पूरी नेकनामी मिट्टी में मिला लिए। सोने के भाव पीतल बेचने वाले को देख कब्र में कितना उलटते पुलटते होंगे। 

क्योकि ये दो चेहरे, आरएसएस नाम के वृक्ष का सबसे मीठा फल हैं। 

🤔

Friday, August 2, 2024

जाति जनगणना मेरी नज़र में जरूरी क्यों?

जाति जनगणना के कई लाभ, नुकसान नगण्य। 
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1. हमारे समाज में जाति और हरेक जाति के आंकड़े/स्थिति से जुड़े कई तरह के भ्रम विद्यमान हैं। उनके टूटने के लिए जातिवार जनगणना जरूरी है। संख्या के साथ उनकी स्थिति का पता होने से असल में वचिंत और कमजोर जातियों को बेहतर सुविधा व योजनाओं का त्वरित लाभ सही अनुपात में दिलाया जा सकता है। 

2. आबादी के अनुपात में सबको समुचित अवसर मिलना ही 'समाजवादी लोकतंत्र' का मूल मकसद है। अनुसूचित जाति, भारत की जनसंख्या में 15 प्रतिशत हैं और अनुसूचित जनजाति 7.5 प्रतिशत हैं। सरकारी नौकरियों, स्कूल, कॉलेज तथा विविध चुनावों में उनको आरक्षण इसी अनुपात में मिलता है। 

3. वहीं, जनसंख्या में ओबीसी और सवर्ण की हिस्सेदारी कितनी है, इसका कोई ठोस आकलन/आंकड़ा नहीं है। 1993 में आये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक, कुल मिला कर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इस वजह से 50 प्रतिशत में से अनुसूचित जाति और जनजाति के संख्यानुपतिक आरक्षण को निकाल कर बाकी का 27 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी के खाते में डाल दिया गया। इसके अलावा ओबीसी को मात्र 27 प्रतिशत आरक्षण का देने का कोई आधार नहीं है।

4. ऐसे में कुछ सवाल बने रह जाते हैं। पहला यह कि ओबीसी की सही आबादी है कितनी? कहीं ओबीसी को संख्या के अनुपात से ज्यादा या कम आरक्षण तो नहीं मिल रहा है? यदि संख्या से ज्यादा आरक्षण मिल रहा है, तो उसे कम किये जाने की जरूरत है, वहीं यदि संख्यानुपात में कम है, तो इस गैरबराबरी को खत्म करने के लिए आरक्षण बढ़ाने की जरूरत है। चूंकि, आठ लाख की पारिवारिक आय वाली गरीबी को आधार बना कर बिना किसी गणना के सवर्णों को दिये 10 प्रतिशत आरक्षण की वजह से आरक्षण का दायरा अब 60 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, तो सही आंकड़े आने पर इसमें कानूनी तौर पर बदलाव भी संभव है। इससे सुप्रीम कोर्ट के मनमाने फैसलों को तथ्यात्मक रूप से चुनौती दी जा सकती है। 

5. एक मुद्दा यह उठता रहता है कि ओबीसी के आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ तीन-चार प्रमुख जातियों ने ही उठाया है। इनमें उत्तर भारत की तीन प्रमुख ओबीसी जाति यादव, कुर्मी और कुशवाहा जाति के नाम आते हैं। ऐसे में जाति जनगणना से पहले तो यह पता चल पायेगा कि क्या 1993 से लेकर अब तक सरकारी नौकरियों में ओबीसी हिस्सेदारी 27 फीसदी तक भी पूरी हो पायी है या नहीं? यदि पूरी हो भी गयी है, तो क्या सचमुच बड़े हिस्से का लाभ इन्हीं कुछ ही जातियों ने उठाया है? इन जातियों की संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व की क्या स्थिति है?

6. ओबीसी जातियों की संख्या और प्रतिनिधित्व के आंकड़े के आधार पर ओबीसी और इबीसी के आरक्षण अनुपात को घटाया/बढ़ाया जा सकता है। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को भी लागू किया जा सकता है। 

7. समाज में अभी तक मुंहजोरों का बोलवाला रहा है, क्योंकि असल में कौन कितने पानी में है, यह पता ही नहीं है। फलाने की आबादी कितनी है, सब जाति जनगणना से पता चल जायेगा। नहीं तो अभी वही स्थिति है कि जैसे- हट्टा-कट्टा श्रम करने वाला मजदूर भी थुलथुले मालिक से खुद को कमजोर मानता है। इसी तरह कई तथाकथित कमजोर जातियां अपनी संख्या को जानती ही नहीं है और यह मान कर कि हम तो कम होंगे, न चुनाव लड़ते हैं, न ही दलों के पास टिकट की दावेदारी करते हैं।

8. रही जातिगत विभेद के बढ़ने की बात तो वह पहले से विद्यमान है और उसे हिंदुत्व वे ऑफ लाइफ के रहते खत्म नहीं किया जा सकता। क्योंकि, इस धर्म में पुजारी बनने की योग्यता/प्रक्रिया शिक्षा न होकर जाति है, इसीलिए महान बनने की कोशिश में अपना बहुमूल्य समय नष्ट न करें।

9. बहुसंख्य दलित/ओबीसी जातियों के लोग भेदभाव से बचने के लिए बच्चों के नाम में सवर्णों जैसे सरनेम जोड़ देते हैं। उन्हें आरक्षण का लाभ उठाने से ज्यादा जातिगत भेदभाव वाली व्यवस्था के शिकार हो जाने का भय होता है। अधिकांशतः जिनके सरनेम को देख जाति का कंफ्यूजन हो, वे पिछड़े-दलित वर्ग के होंगे। यही भय उनके तरक्की का काल है, क्योंकि कोई भी जाति से छोटा-बड़ा नहीं होता। छोटे-बड़े लोगों के सोच होते हैं। जरूरत है कि सोच को बड़ा करते हुए अपनी पहचान की गणना करवाइये। 

10. जैसे मेरी जाति कुशवाहा है, यह कहने के लिए मुझे लम्बा समय लग गया, लेकिन यह कहते हुए न तो मुझे कोई दुख है और न ही कोई गर्व। समाज की जो बुनावट है, उसमें से एक जाति में संयोग से मेरा जन्म हुआ। सभी पिछड़ी-दलित जाति के लोग आराम से सवर्णों के सरनेम की तरह अपनी जाति का सरनेम बिना जातिवादी कहलाये लगा सकें, इसके लिए जाति आधारित जनगणना जरूरी है।

और... जिन्हें लगता है कि वे जात-पात से ऊपर उठ चुके हैं, वे जाति वाले कॉलम में नोटा दबा दें। 

बाकी त जे है से हइये है!

एससी-एसटी आरक्षण में कोटे में कोटा का क्या मतलब है? क्या ये सही है भी या नहीं?


कुछ बहुत सिंपल सी बात लोग नहीं समझ पाते। क्योंकि उन्हें उन्ही के वर्ग के लोग गुमराह कर देते हैं। जैसे एससी-एसटी आरक्षण में कोटे में कोटा। यहां यह बात समझनी होगी कि आरक्षण को खत्म या फिर किसी और को नहीं दिया जा रहा, यहां एससी-एसटी वर्ग के ही उन लोगों को नेतृत्व दिया जा रहा जो तमाम कोशिशों के बाद भी मुख्यधारा में नहीं आ पाए। 

अभी जैसे करीब एससी-एसटी के लिए 23% आरक्षण है। इसमें जाति को लेकर किसी तरह का वर्गीकरण नहीं है। अब होगा यह कि इसमें सरोज, जाटव, मीणा, धोबी जैसी जातियों के कोटे निर्धारित हो जाएंगे। फिर हमें यह देखने को नहीं मिलेगा कि एक परीक्षा में एससी-एसटी कोटे से सिर्फ मीणा या फिर जाटव ही नजर आ रहे। सब नजर आएंगे। सबकी स्थिति बेहतर होगी। 

कुछ लोग कहते हैं कि आरक्षण जाति के आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक भेदभाव पर दिया गया है। हां यह सही बात है लेकिन सामाजिक भेदभाव जब तक खत्म नहीं होगा क्या उन्हीं परिवारों को लाभ मिलता रहेगा जो चार-चार पीढ़ियों से आरक्षण के चलते सिस्टम में हैं। उनके पास घर-गाड़ी, बंगला है। 

दलित वर्ग के शिक्षित और सफल लोगों को अपने समुदाय के लोगों की फिक्र करनी चाहिए थी लेकिन वह सिर्फ जातीय पहचान को बढ़ावा देने और उसे बनाए रखने के लिए फिक्रमंद दिखते हैं। आप अपने गांव में देखिए, जो संपन्न हो गए हैं वह अपने ही वर्ग के लोगों का अपमान करने का मौका नहीं छोड़ते। आर्थिक मजबूती से उनके अंदर एक समांती सोच घर कर जाती है। 

आप सबको ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करना चाहिए। इसके लागू होने से दलित वर्ग की बाकी जातियों को लाभ होगा। अगर आपको लगता है कि दूसरे योग्य नहीं हैं तो आप बताएं कैसे योग्य होंगे? मौका मिलेगा तभी तो होंगे न! आप तो अपने ही भाई बंधुओं को मौका नहीं देना चाहते।

बाबा साहेब अम्बेडकर आज होते तो वह भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते।

_✍️ Rajesh Sahu