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1. संघीय ढांचे और राज्यों के प्रतीक
भारत का संविधान संघीय व्यवस्था को मान्यता देता है, जिसमें राज्यों को अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक पहचान को अभिव्यक्त करने का अधिकार है। यही कारण है कि अधिकांश राज्यों के अपने राजकीय चिह्न, पशु-पक्षी, या वृक्ष होते हैं। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु का चिह्न "मंडपम" उसकी द्रविड़ विरासत को दर्शाता है, जबकि उत्तर प्रदेश का चिह्न उसकी बहुआयामी संस्कृति का प्रतीक है। इन प्रतीकों पर विवाद करना न केवल संघीय भावना के विपरीत है, बल्कि यह राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करने का प्रयास भी माना जा सकता है।
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2. उत्तर प्रदेश के राजचिह्न का महत्व
उत्तर प्रदेश के राजचिह्न में मछली, राम का धनुष, संगम, गंगा-यमुनी तहज़ीब और मुस्लिम शासकों के प्रतीकों का समावेश है। यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है:
- मछली: यह अवध क्षेत्र के ऐतिहासिक प्रतीक से जुड़ी हो सकती है। मछली
को हिंदू परंपरा में समृद्धि और बौद्ध धर्म में ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है।
- धनुष और संगम: ये अयोध्या और प्रयागराज जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्रों
की पहचान हैं।
- मुस्लिम प्रतीक: चाँद (कभी-कभी नवाबी शासन की याद दिलाता है) यह दर्शाता
है कि उत्तर प्रदेश की पहचान किसी एक धर्म या काल तक सीमित नहीं है।
- गंगा-यमुनी तहज़ीब: यह भारत की समन्वयवादी संस्कृति का प्रतीक है, जहाँ
विविधता में एकता का भाव निहित है।
इस चिह्न के नीचे योगी आदित्यनाथ का बैठना इस बात का उदाहरण है कि राजनीतिक नेतृत्व को इतिहास और संस्कृति के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए, न कि उसे मिटाने का प्रयास करना चाहिए।
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3. तमिलनाडु पर आरोपों की विडंबना
जिस तरह उत्तर प्रदेश अपने चिह्न में विविधता को समेटे हुए है, उसी तरह तमिलनाडु का चिह्न भी उसकी स्थानीय पहचान को दर्शाता है। यदि किसी राज्य के प्रतीकों को "राष्ट्रविरोधी" बताया जाता है, तो यह दोहरे मापदंड को उजागर करता है। संघीय व्यवस्था में राज्यों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कमजोर करने के बजाय, राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय विविधता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
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4. गंगा-जमुनी तहज़ीब' का सवाल
उत्तर प्रदेश के चिह्न में मुस्लिम शासकों के प्रतीकों का होना इस बात का प्रमाण है कि भारत की पहचान कभी एकांगी नहीं रही। यहाँ की सभ्यता ने सूफी संतों, भक्ति आंदोलन, और विभिन्न धर्मों के संवाद को आत्मसात किया है। इसलिए, किसी एक समुदाय या इतिहास को हटाने का प्रयास न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा के विपरीत भी है।
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5. निष्कर्ष
राज्यों के प्रतीकों पर विवाद करने के बजाय, हमें इन्हें भारत की बहुलतावादी पहचान के रूप में देखना चाहिए। जैसे उत्तर प्रदेश का चिह्न "सत्यमेव जयते" (सत्य की विजय) के साथ विविधता को गले लगाता है, वैसे ही अन्य राज्यों के प्रतीक भी उनकी अनूठी कहानियाँ कहते हैं। राजनीतिक नेतृत्व को चाहिए कि वह इन प्रतीकों के माध्यम से लोगों को जोड़ने का काम करे, न कि तुष्टीकरण या विभाजन का हथियार बनाए।
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अंतिम टिप्पणी: "गंगा-जमुनी तहज़ीब" केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है; यह पूरे भारत की साझा विरासत है। इसे बचाए रखने के लिए हमें अपने प्रतीकों, इतिहास और संवाद की शक्ति को समझना होगा।
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