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ये ब्रिटिश एस्ट्राजेनेका द्वारा डेवलप वैक्सीन थी। और हमारे यहां अदार पूनावाला की फर्म ने उसका लाइसेंस लेकर, कोविशील्ड के ब्रांड नाम से मास प्रोडक्शन करके बेचा।
याने, जिस तरह पड़ोसी से चार चम्मच दही का मांगकर, हम उससे तसला भर दही जमा लेते है, वैसे ही से डेड वायरस का कल्चर एस्ट्राजेनेका से लेकर यहां उसकी मात्रा बढाई गयी, शीशियों में भरकर बेचा गया।
ये कोई पाथ ब्रेकिंग टेक्नॉलजी नही थी। महज एक कल्चर डेवलप किया गया था। जिसे एगर मीडियम पर बड़े स्केल में ग्रो किया जाना था। कोई भी लैब वाला कर सकता है।
पर वहां तक पहुँच, और लाइसेंस फीस देने लायक पैसा होना चाहिए। फिर अदार को यह लाइसेंस इस शर्त पर भी मिला था, की उसके लैब से प्रोडक्शन का एक बड़ा हिस्सा, विदेशों में एस्ट्राजेनेका के क्लाइंट के लिए भेजा जाएगा।
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तो, अपने कॉन्ट्रैक्ट की शर्त के तहत, जब यहां कई राज्य, वैक्सीन के लिए एड़ियाँ रगड़ रहे थे, अदार अपनी दवा विदेश भेज रहे थे।
इस सबमे भारत सरकार का योगदान एब्सोल्यूट जीरो था। लेकिन मौका ताक कर हमारे प्रधानसेवक ने "भारत पूरे विश्व को वैक्सीन दे रहा है" का शोर मचा दिया।
मचा कर महफ़िल लूट ली।
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लेकिन एस्ट्राजेनेका को सप्लाई से इससे अदार को खास फायदा नहीं था। इलेक्टोरल बांड की हिस्ट्री बताती है, कि मोटा चन्दा भारतीय जनता पार्टी को मिला।
उसके आसपास इनकी दवा को भारत मे चटपट अप्रूवल और तिगुने दाम पर सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया। सरकार ने उसकी दवा फर्म से सप्लाई की 90% खरीदी की।
जबकि भारतीय साइंस लैब की बनाई, बेहतर वैक्सीन "को वैक्सीन" को महज 10% सरकारी सप्लाई का ऑर्डर मिला। उनके द्वारा इलेक्टोरल बांड से चन्दा दिए जाने का कोई रिकार्ड नही मिला है।
फिर हर यात्रा, और स्कूल कॉलेज, हर जगह, वेक्सिनेशन सर्टिफीकेट अनिवार्य कर दिया। डर का ऐसा माहौल बनाया गया, कि हर के लिए इसे लगवाना मजबूरी हो गयी।
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हद तब थी,कि 90 रुपये कॉस्टिंग वाली वॉइल को, अदार की कम्पनी सेंट्रल गवर्मेन्ट को 400 रुपये और स्टेट्स को 1000 रुपये की प्राइजिंग कर रही थी।
इस पर भी खरीदने को तैयार उद्धव ठाकरे जैसे मुख्यमंत्री को सप्लाई मुश्किल से हो रही थी। शायद ये विपक्ष के सीएम थे, इसलिए??
बहरहाल, कुछ माह के साल के अंदर, पूनावाला की छोटी से दवा फर्म, सिर्फ एक दवा से चोटी की फर्म बन गयी। महामारी खत्म हुई, अदार बिलयनेयर बन गए। भारत छोड़ा, लन्दन में मकान लिया।
शिफ्ट हो गए। आजकल अमीरों की मैगजीन में घोड़े पालते दिखाई देते हैं।
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मुफ्त वैक्सीन के नाम पर भक्तों ने कूद कूद चरण वंदना की। सवाल करने वालो को गद्दार और विद्रोही बताया। जब नदियों का पाट लाशों से अटे पड़े थे, श्मशानों की चिमनियां पिघल रही थी, तब भी आत्मश्लाघा और प्रोपगंडा का नंगा नाच जारी था।
श्रेय, पैसा, वोट- सब कुछ हासिल करने के बाद आज.. जब इस दवा के धीमा जहर होने की बात, एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार कर ली है...
तो मौत के परकाले मौन है। भक्त चुप है। एक हजार करोड़ का दावा कम्पनी पर ठोका गया है, तो उसमे हिस्सेदारी करने कोई आगे नही आ रहा।
वो मंगलसूत्र के मुद्दे, और सूरत-इंदौर के तरीकों से अब नया चुनाव लड़ने में मशगूल है।
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मगर मेरे घर पर वह जहरीला सर्टिफिकेट आज भी रखा है। आपके भी घर मे होगा।
उस सर्टिफिकेट पर आपके मां, पिता, भाई, बहन, पत्नी, पति, आपके बच्चो का नाम लिखा होगा। उसमे, उनके शरीर मौत घुसाने की तारीख लिखी होगी। उस पर अरबो हिंदुस्तानियों को मौत बाटने वाले शख्स की खिलखिलाती तस्वीर भी होगी।
वह सर्टिफिकेट खोजिए, निकालिए।
वो सूरत पहचानिये।
क्योकि वह तस्वीर, अदार या एस्ट्राजेनेका कम्पनी के फाउंडर की नही है।
इसमे लिखे किसी भी शब्द के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं, क्युकी मैं इसकी पुष्टि नहीं कर सकता। मैंने इसे twitter post से उठाया है।
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