माँ का emotional drama ऐसा था कि वो फुट-फुट कर रोने लगी कि ये अब मेरे हाथ का खाना भी नहीं खा रहा है।
फ़िर गुस्सा होकर वो घर छोड़ कर चल दी।
जबकि उनके पास possibility था कि वो बच्चे को खाना खिला सकती थी वो भी यहीं रहकर। कुछ बोल कर, किसी के द्वारा मनवा कर, मग़र माँ ने ऐसा नहीं किया।
जब माँ घर छोड़ कर चल दी तो क्या लगता है इसलिए अब बच्चा खा लेगा की माँ घर छोड़ कर चली गई, नहीं ऐसा नहीं है,, और जब भुख चरम पर होगा तो कुछ खा ही लेगा कौन सा आमरण अनशन पर बैठा है; अब तो माँ के पास खिलाने के लिए तो कोई विकल्प भी नहीं है क्युकी वो तो अब घर छोड़ जा चुकी है।
अब कोई कहेगा तुम समझ नहीं सके, माँ इसलिए गई कि तुम खा लोगे। तो मैं बता दूँ ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि मैं इसलिए खा लूँगा की वो चले गए।
ऐसा लगता है जैसे मैंने उन्हें घर छोड़ जाने को मज़बूर किया। पर नहीं उन्हें कहीं ना कहीं जाने का मन भी था इसलिए वो ये बहाना भी बना पाई।
वो रोना, emotional drama करना कितना जायज था? क्या इसे ही "ममता" कहते हैं?
हमें ये "ममता" समझ नहीं आता है। शायद मैं माँ नहीं हूं ना?
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